Samanya Gyan

माइटोकांड्रिया क्या है इस की खोज कब और किसने की थी

माइटोकांड्रिया क्या है इस की खोज कब और किसने की थी

माइटोकांड्रिया की खोज अल्टमैन ने 1886 में की थी

माइटोकॉन्ड्रिया क्या है? और इस के कार्य

कोशिकीय अंग कणाभ सूत्र ( माइटोकॉन्ड्रिया ) क्या है

माइटोकॉन्ड्रिया परिभाषा – माइट्रोकांड्रिया इसका इंग्लिश का शब्द है ज्यादा तो इसको माइट्रोकांड्रिया ही बोला जाता है.  माइट्रोकांड्रिया शब्द ग्रीक भाषा से आया है कणाभ सूत्र कणिकाओं औरशलाकाओं की आकृति वाले होते हैं यह कणाभ सूत्र जीवाणु एवं नील हरित सवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में यह नियमित रूप से बिखरे हुए मिलते हैं  अंगक कोशिका द्रव्य में स्थित होते हैं यह दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है इनकी संख्या विभिन्न जंतुओं में 5 लाख तक हो सकती है और यह 10से 20 से लेकर 100 और 1000 तक ही होती है पर या इससे ऊपर भी हो सकती है लेकिन किसी-किसी जीवन में ही 5 लाख तक की संख्या इनकी हो सकती है.
माइट्रोकांड्रिया का आकार माइक्रोन में होता है और इस को देखने के लिए हमें सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ेगी क्योंकि हम कोशिकाओं को भी नंगी आंखों से नहीं दे सकते उसके लिए भी हमें सूक्ष्मदर्शी की जरूरत होती है कोशिका लगभग 10 से 20 या 50 तक माइक्रोन तक हो सकती है और यह कोशिकाओं के अंदर पाए जाते हैं हजारों की संख्या में तो आप अंदाजा लगा सकते हैं यह आधे माइक्रोन से लेकर 2 माइक्रोन के बीच में इनका साइज होता है माइक्रोन मीटर का 10लाख वा हिस्सा है कुछ विरल उदाहरणों में इनकी लंबाई ज्यादा बड़ी नहीं हो सकती 40 माइक्रोन तक ही हो सकती है पर यह बहुत ही कम संख्या में इतनी लंबाई में पाए जाते हैं.

कणाभ सूत्र (माइट्रोकांड्रिया) का इतिहास

माइट्रोकांड्रिया का इतिहास भी है माइट्रोकांड्रिया को पहली बार रिचर्ड ऑल्टमान  ने देखा था और उन्होंने इस को पहली बार सेल्स में देखा था और सबसे पहले इसको 1894 में देखा गया था और रिचर्ड ऑल्टमान मानने इसका नाम बायोप्लाट्स रखा था लेकिन बाद में 1898 में 4 साल बाद  कार्ल्स बेन्द्रा ने इसका नाम इट्रोकांड्रिया रख दिया था. उसके 6 साल बाद 1904 में फ्रेडरिक मेवेस ने इसे सफेद जलकुमुदनी का नाम दिया. और अंग्रेजी में इसका नाम White Waterlily है.और इस का बायोलॉजिकल नाम Nymphaea Alba है.

उसकी पादप कोशिकाओं में माइट्रोकांड्रिया को वास्तविकता में देखा उसके बाद क्लॉडियस रेगुउद रह गया उसने 1908 में उसके 4 साल बाद बताया कि  माइट्रोकांड्रिया में प्रोटीन और लिक्विड पाए जाते हैं और उसके बाद 1912 में बेंजामिन फ. किंगसबरी ने माइट्रोकांड्रिया को श्वसन यानी रेस्पिरेशन से संबंध होने की व्याख्या की उन्होंने बताया कि यह श्वसन में हिस्सा लेती है माइट्रोकांड्रिया का इतिहास जो हमने आपको बताया है उसमें बहुत ही अनोखी बात है.
इसमें लगभग हर 4 साल बाद कुछ ना कुछ बदलाव जरूर किया गया बस एक बार 6 साल का गैप आया था और बाकी सभी 4 साल के अंतराल पर इसके अंदर कुछ ना कुछ बदलाव किया गया वह चाहे किसी भी तरह का बदलाव किया गया हो सबसे पहले 1894 फिर उसके बाद 1898 में फिर उसके बाद 6 साल का गैप आया 1898 के बाद 1904 और 1904 के बाद फिर 1908 में और फिर 1912 में इसमें बदलाव किए गए और इस तरह के बदलाव से आपको इसको आसान करना याद करना बहुत ही आसान हो जाता है तो यह था माइट्रोकांड्रिया का इतिहास.

माइट्रोकांड्रिया की संरचना गोलाकार होती है. और इनमें दोहरी झिल्ली पाई जाती है एक बाह्यझिल्ली और एक अंत झिल्ली होती है अंत झिल्ली  के अंदर ऊँगली जैसे  इंस्ट्रक्टर  या  आकृतियां होती है.  उंगली नुमा आकृतियों को हम कृष्टि कहते हैं कृष्टि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है हम आगे बताएंगे आपको कैसे महत्वपूर्ण होती है और माइट्रोकांड्रिया में डीएनए भी पाया जाता है सिर्फ माइट्रोकांड्रिया ही एक ऐसा अंतरिक कोशिकीय अंग है जिस में DNA पाया जाता है अगर हम पादप कोशिका की की बात करें तो उसमें क्लोरोप्लास्ट होता है जिसके अंदर डीएनए पाया जाता है जंतु कोशिकाओं में केवल माइट्रोकांड्रिया अंदर डीएनए पाया जाता है इसमें राइबोसोम भी पाए जाते हैं अंदर रक्त होता है उसको हम मैट्रिक्स कहते हैं इसकी दो  झिल्ली के बीच का अंतराल यह मध्यवर्ती जुली अंतराल कहलाता है.

अंदर की जो दूसरी परत होती है उसके अंदर जो उंगली नुमा संरचनाएं होती है उन पर छोटे-छोटे प्रोटीन के अणु मौजूद होते हैं इन प्रोटीन अणु को हम F प्रोटीन कर कहते हैं यह F प्रोटीन भोजन का पाचन करने के बाद ऊर्जा जो निर्माण होता है तो यह F प्रोटीन ऊर्जा के निर्माण में सहायक होता है तो यह ऊर्जा का निर्माण करके माइट्रोकांड्रिया ऊर्जा का संग्रह करते हैं तो इसलिए हम माइट्रोकांड्रिया को कोशिका का पावर हाउस कहते हैं. वास्तविकता में जो चित्र कोशिका के अंदर माइट्रोकांड्रिया का इलेक्ट्रॉनिक सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा गया उसके अंदर गोलाकार माइट्रोकांड्रिया होता हैउंगली नुमा संरचना होती है. जिसे हम इसके अंदर आप देख सकते हैं माइट्रोकांड्रिया होता है और उसके उंगली नुमा संरचना होती है जो कि क्रिस्टी कहलाती है.

माइटोकॉन्ड्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण अंतः कोशिकीय अंग है और यह कोशिकीय श्वसन भाग लेता है और इसको कोशिका का शक्ति ग्रह या पावर प्लांट या ऊर्जा क्षेत्र भी कहा जाता है क्योंकि इसके अंदर आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति होती है यह ऊर्जा को इकट्ठा करते हैं और इस ऊर्जा का संग्रह एटीपी के रूप में होता है ATP के कुछ जीवाणु होते हैं जो कि आपस में मिलकर ऊर्जा का संग्रह करते हैं माइट्रोकांड्रिया के भीतर आनुवंशिक पदार्थ के रूप में डीएनए पाया जाता है जैसा की हमने पीछे बताया भी था माइट्रोकांड्रिया के अंदर उपस्थित डीएनए होता है उसकी रचना वह लगभग जीवाणुओं के DNA के समान होती है कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं कि बहुत समय पहले कोशिकाओं के अंदर जीवाणु गए और उन्होंने माइट्रोकांड्रिया के रूप में अपने आप को परिवर्तित कर दिया DNA होने के कारण माइट्रोकांड्रिया कोशिका के अंदर आवश्यकता पड़ने पर अपनी संख्या अपने आप बढ़ा सकता है DNA जो है वह आनुवंशिक लक्षणों को माता-पिता से संतानों में पहुंचाता है माइट्रोकांड्रिया के अंदर भी डीएनए होता है तो यह अपनी संख्या को स्वयं बढ़ा लेते हैं और एक से दो दो से चार चार से 8 इस तरह माइट्रोकांड्रिया बढ़ते जाते हैं

अगर माइट्रोकांड्रिया में कुछ दोष उत्पन्न हो जाए तो उसके कारण बहुत सारी बीमारियां हो जाती है जैसे मांसपेशियों में  में विकार आ जाना पक्षाघात भी हो सकता है और मंद बुद्धि जैसी समस्याएं हो सकती है तो इस तरीके कुछ बीमारियां उत्पन्न हो सकती है तो यह तो थी आपके लिए कोशिकीय अंगो के अंदर जो माइट्रोकांड्रिया होती है उसके बारे में जानकारी और इस जानकारी को पढ़कर शायद आपको बहुत ही फायदा मिलेगा क्योंकि हमने इस जानकारी के अंदर आपको सभी-सभी चीजें अलग अलग तरह और पूरे विस्तार के साथ बताइए हैं और अच्छे से बताई है मैं आशा करता हूं कि आप को यह जानकारी बहुत पसंद आएगी क्योंकि हमने इसके अंदर आपको माइट्रोकांड्रिया के दोष उत्पन्न हो जाने से क्या होता है माइट्रोकांड्रिया का इतिहास माइक्रो टर्नर क्या होता है माइट्रोकांड्रिया के अंदर क्या-क्या चीज पाई जाती है ₹1 का नाम कैसे पड़ा का शुरुआत में क्या नाम था इस तरह की जानकारी दी है.

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