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Class 8 Social Science History Chapter 8 – महिलाएं, जाति एवं सुधार

Class 8 Social Science History Chapter 8 – महिलाएं, जाति एवं सुधार

NCERT Solutions For Class 8th History Chapter 8 महिलाएं, जाति एवं सुधार आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए जो अपनी क्लास में सबसे अच्छे अंक पाना चाहता है उसके लिए यहां पर एनसीईआरटी कक्षा 8th सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 8 (महिलाएं, जाति एवं सुधार) के लिए समाधान दिया गया है. इस NCERT Solution For Class 8 History Chapter 8 Women, Caste and Reform की मदद से विद्यार्थी अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है.

कक्षा: 8th Class
अध्याय: Chapter 8
नाम: महिलाएं, जाति एवं सुधार
भाषा: Hindi
पुस्तक: हमारे अतीत III

NCERT Solutions For Class 8 इतिहास (हमारे अतीत – III) Chapter 8 महिलाएं, जाति एवं सुधार

अध्याय के सभी प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1. निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया
(क) राममोहन राय
(ख) दयानंद सरस्वती
(ग) वीरेशलिंगम पंतुलु
(घ) ज्योतिराव फुले
(च) पंडिता रमाबाई
(छ) पेरियार
(ज) मुमताज़ अली
(झ) ईश्वरचंद्र विद्यासागर

उत्तर- (क) राममोहन राय
(1) विधवाओं की दशा सुधारने का प्रयास किया।
(2) सती-प्रथा का अंत करवाया।
(3) पुरानी परंपराओं को त्यागने के लिए लोगों को प्रेरित किया।
(4) ब्रह्मो समाज की स्थापना की।

(ख) दयानंद सरस्वती-
(1) 1875 में आर्य समाज की स्थापना की।
(2) स्त्री. शिक्षा पर बल दिया।
(3) हिंदू धर्म को सुधारने का प्रयास किया।
(4) वेदों की ओर लौटने का प्रयास किया।

(ग) वीरेशलिंगम पंतुल-
(1) विधवा विवाह का समर्थन किया।
(2) मद्रास प्रेसिडेंसी के तेलुगू भाषी लोगों में सुधारों को लोकप्रिय बनाया।

(घ) ज्योतिराव फुले
(1) उन्होंने जाति पर आधारित समाज में फैले अन्याय का विरोध किया।
(2) उन्होंने शूद्रों और अति शूद्रों को जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए संगठित किया।
(3) आर्यों की श्रेष्ठता का विरोध किया।
(4) सत्यशोधक समाज की स्थापना की।

(च) पंडिता रमाबाई-
(1) हिंदू धर्म द्वारा महिलाओं के दमन का विरोध किया।
(2) पूना में एक विधवा गृह की स्थापना की।
(3) महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया।
(4) ऊँची जातियों की हिंदू महिलाओं की दुर्दशा पर एक किताब लिखी।

(छ) पेरियार-
(1) उन्होंने दलितों के समर्थन में स्वाभिमान आंदोलन खड़ा किया।
(2) उन्होंने हिंदू वेद पुराणों की कटु आलोचना की।
(3) उन्होंने दलितों के लिए समानता की लड़ाई लड़ी।
(4) वे ब्राह्मणवाद के विरोधी थे।

(ज) मुमताज़ अली-
(1) मुसलमान महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया।
(2) महिलाओं के अधिकारों और समाज सुधार आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई।

(झ) ईश्वरचंद्र विद्यासागर-
(1) कलकत्ता में लड़कियों के लिए स्कूल खोले।
(2) विधवा विवाह का समर्थन किया और विधवा विवाह आंदोलन का सफल नेतृत्व किया।
(3) 1856 में विधवा विवाह के पक्ष में कानून पास कराया।
(4) सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ:

(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था।
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था।
उत्तर- (क) सही, (ख) गलत, (ग) गलत, (घ) गलत।

प्रश्न 3. प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली ?

उत्तर- प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में निम्नलिखित प्रकार से सहायता मिली

(1) राममोहन राय संस्कृत, फारसी तथा अन्य कई भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने अपने लेखन के द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की कि प्राचीन ग्रंथों में विधवाओं को जलाने की अनुमति कहीं नहीं दी गई है। .

(2) प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने भी विधवा विवाह के पक्ष में प्राचीन ग्रंथों का हवाला दिया था। अंग्रेज़ सरकार ने उनका यह सुझाव मान लिया और 1856 में विधवा विवाह के पक्ष में एक कानून पारित कर दिया।

(3) स्वामी दयानंद ने वेदों को आधार बनाकर समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार का आंदोलन चलाया।

(4) इसी तरह अन्य अनेक सुधारकों ने जब कभी भी समाज सुधार के लिए अपने विचार से किसी प्रचलित रीति-रिवाज़ को गलत समझा और उसे चुनौती देनी चाही तो उन्होंने प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथों से कोई वाक्य या कथन लिया और उसे अपने निर्णय के समर्थन में प्रस्तुत कर दिया। इसलिए उन्होंने जोर देकर कहा कि जो समाज में रीति उस समय प्रचलित है वस्तुतः वह प्राचीन मौलिक ग्रंथ या धर्मशास्त्र के अनुसार ही नहीं है।

(5) स्वामी विवेकानंद ने भारतीय धार्मिक ग्रंथों को आधार बनाकर समाज सुधार का बीड़ा उठाया और विश्व के सभी लोगों में आपसी भाईचारे का संदेश फैलाया।

प्रश्न 4. लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे ?

उत्तर- लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास निम्नलिखित कारण होते थे
(1) लोगों को भय था कि स्कूल वाले लड़कियों को घर से भगा ले जाएँगे और उन्हें घरेलू काम-काज नहीं करने देंगे।

(2) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से होकर गुजरना पड़ता था।

(3) बहुत सारे लोगों को लगता था कि स्कूल जाने से लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी।

(4) बहुत सारे लोग पुरुष शिक्षकों या सह-शिक्षा वाले स्कूलों में अपनी लड़कियों को पढ़ने भेजने के लिए तैयार नहीं होते थे।

(5) बहुत सारे लोगों का मानना था कि लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से दूर ही रहना चाहिए।

(6) कुछ परिवारों में महिलाओं को उनके उदार विचारों वाले पिता या पति के द्वारा घर पर ही पढ़ाया जाता रहा।

प्रश्न 5. ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे ? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा ? यदि हाँ तो किस कारण ?

उत्तर- (1) उन्नीसवीं सदी के ईसाई प्रचारक जाति पर आधारित समाज व्यवस्था के अन्याय से बहुत दुःखी हुए। उन्होंने आदिवासियों और निचली जातियों के बच्चों के लिए स्कूल खोलने शुरू कर दिए लेकिन ईसाई मिशनरियों पर अनेक लोगों द्वारा आक्रमण किए गए थे क्योंकि वे उनकी अनेक गतिविधियों को पसंद नहीं करते थे। उदाहरणार्थ अनेक राष्ट्रवादी हिंदू यह महसूस कर रहे थे कि ईसाइयों के संपर्क में आकर अनेक महिलाएँ पश्चिमी रंग-ढंग ग्रहण कर रही थीं और वे हिंदू संस्कृति को भ्रष्ट कर देंगी तथा परिवार के जो सदियों पुराने रीति-रिवाज एवं परंपराएँ हैं उन्हें भी वे त्याग देंगी। वे मानते थे कि ‘लज्जा’ औरतों का गहना है। अनुशासन, पारिवारिक एकता एवं सहयोग के लिए आवश्यक है। वे संयुक्त परिवार को पाश्चात्य एकाकी परिवार से अच्छा मानते थे।
धर्मान्ध एवं पिछड़ी मानसिकता वाले मुसलिम भी ईसाई मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे। वे मानते थे कि इससे उनकी पोल खुल जाएगी और उनकी धार्मिक सत्ता को खतरा होगा।

(2) बहुत-से लोगों ने खास तौर पर दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों तथा प्रगतिशील विचारधारा के लोगों ने उनका समर्थन किया क्योंकि इससे उन लोगों के जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आ गया।

प्रश्न 6. अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन-से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे ?

उत्तर- (1) निम्न जातियों के बहुत सारे गरीब लोग शहरों में निकल रही नौकरियों की तलाश में गाँव छोड़कर जा रहे थे।
(2) कुछ लोग असम, मॉरिशस, त्रिनीदाद और इंडोनेशिया आदि स्थानों पर काम करने के लिए चले गए।

(3) इन जातियों के लोगों को अपने गाँवों के सवर्ण जमींदारों के चंगुल से मुक्ति मिल गई और वे गाँव से दूर जाकर स्वाभिमान भरा जीवन जीने को स्वतंत्र थे।
(4) इसके अतिरिक्त दूसरी तरह की नौकरियों के अवसर भी मिल रहे थे। उदाहरण के लिए सेना में भी लोगों की आवश्यकता बढ़ गई थी। अछूत माने जाने वाले महार समुदाय के बहुत-से लोगों को महार रेजीमेंट में नौकरी मिल गई। दलित आंदोलन के नेता बी.आर. अम्बेडकर के पिता एक सैनिक स्कूल में ही पढ़ाते थे।

प्रश्न 7. ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया ?

उत्तर- ज्योतिराव फुले ने समाज में फैली जाति प्रथा का घोर विरोध किया। ब्राह्मणों के इस दावे पर खुलकर प्रहार किया कि आर्य होने के कारण वे दूसरों से श्रेष्ठ हैं। फुले का तर्क था कि आर्य विदेशी थे, जो उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे और उन्होंने इस मिट्टी के असली वारिसों-आर्यों के आने से पहले यहाँ रह रहे मूल निवासियों को हराकर उन्हें बन्दी बना लिया था। जब आर्यो ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया तो वे पराजित जनता को नीच, निम्न जाति वाला मानने लगे। फुले के अनुसार, “ऊँची” जातियों को उनकी जमीन और सत्ता पर कोई अधिकार नहीं है। यह धरती यहाँ के देशी लोगों की, कथित निम्न जाति के लोगों की है।

प्रश्न 8. फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आजादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया ?

उत्तर- 1873 में फुले ने ‘गुलामगीरी’ (गुलामी) नामक एक पुस्तक लिखी। इससे लगभग दस साल पहले अमेरिकी गृह युद्ध हो चुका था जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका में दास प्रथा समाप्त कर दी गई थी। फुले ने अपनी पुस्तक उन सभी अमेरिकियों को समर्पित की जिन्होंने गुलामों को आज़ादी दिलाने के लिए संघर्ष किया था। इस तरह उन्होंने भारत की “निम्न” जातियों और अमेरिका के काले गुलामों की दुर्दशा को एक-दूसरे से जोड़ दिया।

प्रश्न 9. मंदिर प्रवेश आंदोलन के ज़रिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे ?

उत्तर- (1) अम्बेडकर एक महान् परिवार में पैदा हुए थे। बचपन में उन्होंने इस बात को बहुत पास से देखा था कि रोज़मर्रा की जिंदगी में जातीय भेदभाव और पूर्वाग्रह क्या होता है। स्कूल में उन्हें कक्षा के बाहर भूमि पर बैठना पड़ता था। उन्हें सवर्ण बच्चों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले नलकों से पानी पीने की आज्ञा नहीं थी।

(2) सन् 1927 में अम्बेडकर ने मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया जिसमें महार जाति के लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। ब्राह्मण पुजारी इस बात पर बहुत क्रोधित हुए कि दलित भी मंदिर के जलाशय का पानी प्रयोग कर रहे हैं।

(3) 1927 से 1935 के बीच अम्बेडकर ने मंदिरों में प्रवेश के लिए ऐसे तीन आंदोलन चलाए। वह पूरे देश को समझाना चाहते थे कि समाज में जातीय पूर्वाग्रहों की जकड़ कितनी मजबूत है।

प्रश्न 10. ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली ?

उत्तर- फुले और रामास्वामी राष्ट्रवाद के विरोधी नहीं थे। रामास्वामी तो काँग्रेस के सदस्य भी रहे। लेकिन वे राष्ट्रवादी आंदोलन के नेताओं और जातिवादी सोच के घोर विरोधी थे। जब रामास्वामी ने राष्ट्रवादियों द्वारा आयोजित की गई एक दावत में देखा कि उच्च और निम्न जातियों के लिए बैठने के लिए जाति के हिसाब से अलग-अलग प्रबंध कर रखा है कि उन्होंने काँग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। फुले और रामास्वामी ब्राह्मणों के श्रेष्ठवाद के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि अछूतों को अपने स्वाभिमान के लिए खुद लड़ना होगा। राष्ट्रीय आंदोलन को मदद-फुले और रामास्वामी ने दलित और निम्न जातियों को संगठित और प्रेरित किया। इन जातियों का सामाजिक विकास हुआ और ये भारत की मुख्य राष्ट्रधारा का हिस्सा बन गई। जब भारत के संविधान का निर्माण किया गया तो फुले और रामास्वामी की विचारधारा को भारतीय संविधान में स्थान देकर दलितों और निम्न जातियों के लोगों के उत्थान के लिए प्रावधान किए गए।

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