श्वसन (Respiration) क्या है और यह कितने प्रकार के होते है
हमें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की बहुत ज्यादा जरूरत होती है. जब हम सांस लेते हैं तो हवा में अन्य कई प्रकार की गैस भी हमारे शरीर के अंदर जाती है. लेकिन उसमें से सिर्फ ऑक्सीजन को हमारा शरीर ले लेता है. और बाकि गैस को बाहर निकाल देता है. जिसमें सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होता है.. सांस को अंदर लेना और बाहर छोड़ने की पूरी प्रक्रिया को श्वसन तंत्र द्वारा किया जाता है.. श्वसन की परिभाषा :-वायुमंडल में ऑक्सीजन शरीर की कोशिकाओं मे पहुंच कर भोजन का ऑक्सीकरण या जारण करती हैं तथा CO2 गैस निकलती है..ऐसी सभी भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं श्वसन कहते हैं.
1.कोशिकीय श्वसन एवं ऑक्सीकारक एवं ऊर्जा प्रदान करने वाली प्रक्रिया है.. जिसमें जटिल कार्बनिक यौगिकों के टूटने से सरल यौगिक बनते हैं और CO2 गैस निकलती है.. ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर श्वसन वायवीय एवं अवायवीय होता है..
(1) वायवीय श्वसन(Aerobic respiration)
वह प्रक्रिया जिसमें ऑक्सीजन की उपस्थिति में श्वसन क्रियाधार का ऑक्सीकरण ,CO2,H2O मे होता है. एवं ऊर्जा प्राप्त होती है..
C6H12O6+6CO2→6CO2+6H2O+686 kcal
कोशिकीय श्वसन में ग्लूकोस के एक अणु से पाइरुविक अम्ल के 2 अणुओं के निर्माण की प्रक्रिया ग्लाइकोलाइसिस कहलाती है.. ग्लाइकोलाइसिस कोशिकाद्रव्य में संपन्न होती है.. क्रेब्स चक्र में पाइरुविक अम्ल के ऑक्सीकरण से ऊर्जा CO2 तथा H2O प्राप्त होती है.. यूकैरियोटिक कोशिका में एक ग्लूकोस अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से 36 ATP अणु प्राप्त होते हैं.प्रोकैरियोटिक कोशिका में एक ग्लूकोस अणु के ऑक्सीकरण अवायवीय दशा में 2 ATP जबकि वायवीय दशा में 38 ATP प्राप्त होते है. .
श्वसन में तीन प्रकार होते हैं.
1.बाह्य श्वसन(External respiration)
रुधिर या शरीर तथा वायु के बीच O2 तथा CO2 का आदान प्रदान करता है..
2.अंन्त श्वसन (internal respiration)
रुधिर तथा ऊतकों या कोशिका के बीच O2 तथा CO2 का आदान प्रदान करता है..
3.कोशिकीय श्वसन(cellular respiration)
कोशिकाओं में इंधन पदार्थों का ऑक्सीकरण तथा ऊर्जा का उत्पादन ग्लूकोस को कोशिकीय ईंधन कहते हैं.
(2) अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respiration)
वह प्रक्रिया जिसमें ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में श्वसन क्रियाधार का CO2 एवं एल्कोहल से अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है.
C6H12O2 यीस्ट कोशिका →2CO2+2C2H5OH+56 kcal
इस क्रिया को किण्वन भी कहते हैं.कंकालीय पेशियों में अवायवीय श्वसन द्वारा ग्लूकोस से लैक्टिक अम्ल बनता है..
2H + CO.CH3 COOH in muscles→ C3H6O3
अवायवीय श्वसन में ऊर्जा का उत्पादन कम होता है.
मानव का श्वसन तंत्र (Human respiratory system)
मानव के प्रमुख श्वसननाग फेफड़े होते हैं जो वक्ष गुहा में कशेरुकदंड तथा पसलियों द्वारा बने एक कटघरे में सुरक्षित स्थित होते हैं अतः फेफड़ों तक बाहरी वायु के आवागमन हेतु नासिका ग्रसनी वायुनाले तथा इसकी शाखाएं मिलकर एक जटिल वायुमार्ग बनाती है. इस प्रकार यह सब अंग तथा फेफड़े मिलकर मानव का श्वसन तंत्र बनाते है..
श्वसन तंत्र को दो भागों श्वसन अंग तथा संवाही में बांटा जा सकता है..
(1) श्वसन अंग (Respiratory Organs)
मनुष्य में फेफड़े श्वसन तंत्र में श्वसन अंग का काम करते हैं. फेफड़ों के ऊपर दोहरी झिल्ली होती है. जिससे फुफ्फुसावरणी कला या प्लूरा कहते हैं.खरगोश के दाएं फेफड़े में 4 पसलियां होती है. जबकि मनुष्य के 3 पसलियां होती है.. फेफड़ों की रचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई वायुकोष या कुपिका कोश होती है. वायुकोष की दीवारों पर कूपिकाएं होती है..
(2) संवाही तंत्र (Conducting System)
1.नासाद्वार
नासाद्वारों के बीच का स्थान नासा वेश्म होता है. इसके पृष्ठभाग में घ्राण उपकला होती है. तथा शेष भाग में रोमाभि उपकला होती है. जिसे श्वसन कला कहते हैं इसमें अनेक चषक कोशिकाएं होती है..
2.ग्रसनी
यह मुखगुहा का पिछला भाग है. जो घाटि या ग्लटिस द्वारा लैरिक्स में खुलता है. ग्लटिस के ऊपर एपिग्लाटिस लगा होता है. जो भोजन निगलते समय श्वास नली का छिद्र बंद कर देता है..
3.श्वसनाल
श्वसननाल ग्रासननली के उधर तल से चिपकी रहती है. इसके मिट्टी में हाईलाइट उपास्थि के बने C के आकार के छल्ले बने होते हैं.
4.श्वसनी
श्वासनी वक्षगुहा में जा कर दो ब्रोकाई में विभक्त हो जाती है. इनकी भित्ति में उपास्थि होते हैं
5.श्वसनिका
खरगोश में दाहिने श्वसनी 4 तथा मनुष्य में 3 श्वसनिकाओं में विभक्त हो जाती है. श्वसनिकाएं कुपिका वाहिनियों में विभक्त हो जाती है. प्रत्येक कुपिकाए वाहिनी अपने छोर पर वायु कोष्ठकों के एक गोल से समूह में घुस जाती है. इस समूह में कई छोटे-छोटे वायुकोष होते हैं प्रत्येक वायु कोष में दो या तीन छोटे-छोटे थैलीनुमा वायुकोष्ठक खुलते हैं.
श्वासोच्छवास (Breathing)
मानव एवं अन्य स्तनधारियों में शरीर का वक्ष भाग एक पिंजरे के समान बंद होता है. इसके आगे की और गर्दन पीछे की ओर डायाफ्राम पृष्ठ तल पर कशेरुकदंड अधर तल पर स्र्टनम तथा पार्शवो में पसलियां होती है..वक्षीय भाग का संकुचन एवं प्रसार डायाफ्राम की अरिय पेशियों तथा पसलियों से लगी अंतरापर्शुक से सिकुड़ने व शिथिलन से होता है..श्वासोच्छवास या बाह्य श्वसन से वायु का अंतर श्वसन एवं उच्छवास होता है..
अन्तःश्वास
इस प्रक्रिया में वायु अंदर ले जाती है. जिससे डायाफ्राम की पेशियां संकुचित होती है.. एवं डायाफ्राम समतल हो जाता है..निकली पसलियां बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती है..छाती फूल जाती है. फेफड़ों में वायु का दबाव कम हो जाता है. और वायु फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है..
उच्छवास
उच्छवास की क्रिया में वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है..इसमें डायाफ्राम एवं पसलियों की पेशियां शिथिल हो जाती है. तथा डायाफ्राम फिर से गुबंद के आकार का हो जाता है..छाती संकुचित होती है. तथा वायु बाहर की ओर नाक एवं वायु नालद्वारा निकलती है.. मनुष्य 1 मिनट में 12-15 बार सांस लेता है. जबकि नवजात शिशु 1 मिनट में लगभग 40 बार सांस लेता है.. सोते समय श्वसन की दर सबसे कम होती है..मनुष्य ने वायु का मार्ग इस प्रकार होता है..
नासारंध्र → ग्रसनी → श्वसनयंत्र → श्वसनाल → श्वसनी → श्वसनिकाएं → वायु कोष्ठक → रुधिर → कोशिका
श्वासोच्छवास का नियंत्रण
मनुष्य की हर सामान्य सांस में लगभग 2 सेकंड की अंत:श्वास और 3 सेकंड की उच्छवास होती है..केंद्र श्वासोच्छवास की सामान्य लय एवं दर का नियंत्रण करता है..श्वासोच्छवास पूर्णरूपेण तंत्रिकिय नियंत्रण में होता है. मस्तिष्क की मेडयूला एवं पोंस वैरोलाइ मे स्थित एक द्विपाशर्वीय श्वास नियंत्रण करता है
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मनुष्य वायु से जितनी स्वसन में ऑक्सीजन लेता है उसका कितना प्रतिशत शरीर उपयोग करता है ?
Swasochhvas Kya hai
श्वासामधून दर दिवसाला मानवाकडून———— कि.ग, हवेचे श्वसन केले जाते.