NIOS Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन

NIOS Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन

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NIOS Class 10 Social Science Chapter 8 Solution – भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन

प्रश्न 1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रारंभिक वर्षों के शुरुआत में किस प्रकार की मांग ब्रिटिश सरकार के सामने रखी गई ?
उत्तर- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस की प्रमुख मांगें थीं-
(i) विधान सभा का विस्तार
(ii) प्रशासन में भारतीयों का समावेश
(iii) सैनिक व्यय में कमी
(iv) भारत तथा इंग्लैंड दोनों में आई. सी. एस. परीक्षा साथ-साथ कराना
(v) नागरिक अधिकारों की रक्षा
(vi) केन्द्रीय कार्यपालिका से न्यायपालिका की स्वतंत्रता
(vii) आर्थिक सुधार ।

प्रश्न 2. लॉर्ड कर्जन बंगाल का विभाजन क्यों चाहता था ?
उत्तर- बंगाल विभाजन लॉर्ड कर्जन का सबसे मूर्ख काम था। इस विभाजन के पीछे ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य था मुसलमानों और हिंदुओं में द्वेष पैदा करना। सरकार ने कहा कि बंगाल बहुत बड़ा है। इसलिए उसे प्रशासन की सुविधा के लिए विभाजित करना आवश्यक है। सरकार को बंगाल में पहले हुए आंदोलन से घबराहट हुई थी, इसलिए बंगाल को विभाजित करना चाहिए था। विभाजन का बंगालियों ने तीव्र विरोध किया। साठ हजार लोगों ने एक आवेदन भेजा, लेकिन लॉर्ड कर्जन ने भारतमंत्री को बताया कि भारतीय जनता का बहुमत विभाजित होने के पक्ष में है। उसने मुसलमानों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए साम्प्रदायिकता से ओत-प्रोत भाषण देने आरम्भ कर दिया, जिससे भारतीय जनता ने बहुत विरोध किया, लेकिन 1905 में बंगाल का विभाजन हो गया। भारतीय जनता को बंगाल के विभाजन से बहुत दुःख हुआ। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने कहा कि ‘बंगाल-विभाजन की घोषणा एक बम गोले की भांति गिरी। हमें अपमानित और उपेक्षित महसूस हुआ।जनता ने आंदोलन का विरोध करने के लिए घरेलू आंदोलन शुरू किया। ब्रिटेन में निर्मित सामान बाहर किया गया। 16 अक्टूबर को सरकार ने विभाजन दिवस के रूप में मनाया, लेकिन आम लोगों ने इसे शोक दिवस के रूप में मनाया। सात साल तक यह आन्दोलन जारी रहा । आन्दोलनकारियों को कुचलने के लिए सरकार ने कठोर नीति अपनाई। जनता के लगातार आंदोलन ने सरकार को दिसंबर 1911 में बंगाल विभाजन रद्द करना पड़ा। यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में पहली विजय थी।
भारतीय राष्ट्रीय भावना बहुत मजबूत हुई जब बंगाल विभाजन हुआ। इससे तत्कालीन भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी तथा हिंसक विचारधारा का जन्म हुआ ।

प्रश्न 3. अफ्रीका में गांधीजी द्वारा किए गए सत्याग्रह का क्या महत्त्व था? गांधीजी द्वारा भारत में किए गए सत्याग्रह की क्या प्रकृति थी?
उत्तर – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में हुआ था, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक था। वह मोहनदास कर्मचन्द गांधी था। इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई करने के बाद वे दक्षिणी अफ्रीका चले गए। वहाँ उन्होंने वकालत करना शुरू किया। दक्षिणी अफ्रीका में प्रजातीय भेदभाव के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई। वहाँ रहने वाले भारतीय नागरिकों को मतदान करने का अधिकार नहीं था। भारतीयों को वहां एक खराब बस्ती में रखा गया। रात्रि के 9 बजे के बाद अफ्रीकाई और एशियाई लोगों को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। वे सार्वजनिक पैदल मार्ग का प्रयोग नहीं कर पाए। भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ गांधी ने दो दशक तक अहिंसात्मक सत्याग्रह किया। गांधीजी की मेहनत से दक्षिणी अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों की स्थिति में सुधार हुआ।
1915 में, गांधी दक्षिणी अफ्रीका से भारत आए थे । उस समय उन्होंने ४६ वर्ष की आयु की थी । उन्होंने भारत में विदेशी शासन के शोषण और अत्याचार को देखा। जनता की पीड़ा देखकर उनका दिल टूट गया। 1916 में, एक वर्ष के भारत यात्रा के बाद, उन्होंने अहमदाबाद के निकट साबरमती आश्रम की स्थापना की । यहाँ उन्होंने अपने अनुयायियों को अहिंसा और सत्य का पालन करना सिखाया।

गांधी जी द्वारा चम्पारन का सत्याग्रह – 1917 में, गांधी ने बिहार के चंपारन जिले में ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ सत्याग्रह किया था। गांधी जी की स्थिति से प्रभावित ब्रिटिश अधिकारियों ने वहां के किसानों को जिला छोड़ने का आदेश दिया। गांधी ने सरकारी आदेशों को छोड़कर सत्याग्रह शुरू किया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जे. पी. कृपलानी, मजहरूल हक, नरहरि पारिख और महादेव देसाई भी गांधी जी के साथ थे । सरकार ने विवश होकर एक जांच समिति बनाई। गांधी भी इस समिति में शामिल थे। किसानों की समस्याएं गांधीजी के प्रयासों से कम हुईं। यह गांधीजी का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पहला सविनय अवज्ञा अभियान था।

प्रश्न 4. असहयोग आंदोलन अपने उद्देश्य में सफल था । अपने तर्क के पक्ष में कोई दो कारण दें।
उत्तर- असहयोग आंदोलन के तीन मुख्य उद्देश्य थे-
(1) स्वदेशी को बढ़ावा देना खासकर हस्तकरघा और बुनाई,
(2) हिंदुओं में अस्पृश्यता का अंत,
(3) हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना।
गाँधीजी की इसी अपील ने देश को बहुत उत्साहित कर दिया। बहुत से लोगों ने अपने मतभेदों को छोड़कर इस आंदोलन में भाग लिया। नवंबर 1920 में हुए काउंसिल चुनाव में भाग लेने से दो-तिहाई से अधिक मतदाताओं ने इनकार कर दिया। हजारों विद्यार्थियों और शिक्षकों ने स्कूलों और कॉलेजों को छोड़कर नए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की।आसफ अली, मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास और सी. राजगोपालाचारी जैसे वकीलों ने न्यायालय का बहिष्कार किया। विधानसभा भी नहीं हुई। विदेशी कपड़े जला दिए गए और विदेशी सामान बाहर निकाला गया। लेकिन गाँधीजी के विचारों से कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं जो आंदोलन के दौरान हुईं। अगस्त 1921 में हिंसक असयोग आंदोलन की शुरुआत हुई, जिससे हिंसा शुरू हुई। दो महीने में लगभग ३० हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया था। Gandhi ने हिंसा फैलाने से चेतावनी दी। 9 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौराचौरी गाँव में उग्र भीड़ ने हिंसा फैलाई। इसके बाद बरेली में एक और हिंसा की घटना हुई। 14 फरवरी, 1922 को गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को रोक दिया। उन्हें 18 मार्च, 1922 को अहमदाबाद में गिरफ्तार कर छह साल की सजा सुनाई गई थी। गांधीजी और उनके अनुयायी असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में सृजनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रहे। उन्होंने जातिगत द्वेष को दूर करने का संदेश दिया।

प्रश्न 5. साइमन कमीशन को भारत छोड़ने को क्यों कहा गया ?
उत्तर – ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारी आन्दोलनों की बढ़ती सक्रियता और भारतीयों द्वारा अपना विरोध व्यक्त करने के कारण कुछ सख्त कार्रवाई करने का फैसला किया। इस समय ब्रिटिश सरकार ने कुछ संवैधानिक सुधारों को अपनाने का फैसला किया, जो भारतीयों को केवल बाहर से ही खुश करने के लिए थे और कोई भी वास्तविक सुधार नहीं थे। इस समय, ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन का गठन करके अधिक संवैधानिक सुधार की घोषणा की। घोषणा का प्रारूप खुलने पर केवल अंग्रेजी भाषी लोगों को ही शामिल किया गया था। भारतीय को शामिल नहीं किया गया। इसका स्पष्ट उद्देश्य था कि वैसे भी कोई संवैधानिक सुधार लागू नहीं होंगे, और अगर ऐसा हो भी तो वह सिर्फ ऊपरी दिखावा होगा। ये सुधार आम लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरेंगे। इस कमीशन की घोषणा ने आम लोगों को परेशान कर दिया। लोग क्रोधित हो गए। इस कमीशन ने भारतीय राष्ट्रवाद को भड़काया। भारत में इस कमीशन को हर राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी और आम आदमी ने बहुत बुरा बताया। इसमें किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था जो ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की समस्याओं को बता सके, इसलिए इसकी जगह-जगह आलोचना हुई। भारतीय जनता, बुद्धिजीवी वर्ग और नेताओं ने इसका बहिष्कार करने का फैसला किया। 3 फरवरी, 1928 को भारत आए साइमन कमीशन के सदस्य। इसके विरोध में देश भर में हड़तालें और धरने हुए । इस कमीशन के खिलाफ व्यापक जनप्रदर्शन हुए और लोगों ने जुलूस निकालकर इसका विरोध किया। इस कमीशन का लगभग पूरा शहर विरोध करता था। लोगों ने इश्तिहारों और बैनरों से “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाया। इस कमीशन को जगह-जगह झण्डे दिखाए गए। इस विरोध को ब्रिटिश सरकार ने कठोरता से दबाया। जुलूसों पर शोर मच गया। प्रमुख नेताओं को बदनाम किया गया।

प्रश्न 6. दांडी मार्च गांधीजी की गिरफ्तारी का कारण क्यों बनी ?
उत्तर – गांधीजी ने मार्च, 1930 ई. को दांडी यात्रा के दौरान सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की थी । गाँधी जी के अनुयायियों ने दांडी नामक समुद्र तटीय स्थान पर नमक बनाया, जिससे नमक कानून बनाया गया, जो सभी को सरकारी कानून के खिलाफ बनाया गया था, और यह उपनिवेशवाद के खिलाफ एक बड़ा कदम था. स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। इसने उपनिवेशवाद की पूरी व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। नमक पर कर लगाने की बात लोगों को चुभने लगी, जिससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ जनमत बनती गई। महात्मा गाँधी और उनके साथियों को साबरमती आश्रम से दांडी की कोई 240 मील की यात्रा में कई जगह रुकना पड़ा। हर जगह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई। जिससे देशभक्ति बढ़ी और लोगों में उपनिवेशवाद के प्रति घृणा बढ़ी । जैसे ही 6 अप्रैल, 1930 को समुद्र के पानी से नमक बनाया गया, सबको पता चला कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया था। इस तरह, नमक कानून को तोड़ना उपनिवेशवाद के खिलाफ विरोध का एक प्रभावी प्रतीक बन गया।

प्रश्न 7. आंदोलनकारियों ने विधानसभा में बम फेंककर क्या किया?
उत्तर- दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम पर बहस चल रही थी। जनता इस बिल से असहमत थी। क्रान्तिकारियों ने विधानसभा में अहिंसक बम विस्फोट करके जनता की आवाज शासन को सुनाने की योजना बनाई। यह काम भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को दिया गया था। दोनों क्रांतिकारियों ने बम विस्फोट के समय सदन में एक पर्चा फेंका, जिसमें लिखा था: “बहरों को सुनाने के लिए बमों की जरूरत है।”

प्रश्न 8. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज की भूमिका की चर्चा करें।
उत्तर – 17 जनवरी 1941 को नेताजी भारत से विदेशों से आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए चले गए। जुलाई 1943 में, सोवियत संघ और जर्मनी से आए नेताजी जापान पहुंचे। रूस और जर्मनी से संपर्क करने के बाद, उन्होंने जापान में रास बिहारी बोस और अन्य क्रांतिकारियों द्वारा बनाई गई ‘इंडियन इंडिपेंडेन्स लीग’ का नेतृत्व लिया। उन्हें कैप्टन मोहन सिंह ने आजाद हिंद फौज (INA) बनाया और भारतीय युद्धबंदियों को भर्ती किया। नेताजी ने जय हिन्द कहा। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा,” उन्होंने अपने सैनिकों से कहा।उन्होंने “दिल्ली चलो” का आह्वान किया और भारत को ब्रिटिश गुलामी से मुक्त करने का अभियान शुरू किया। उन्होंने अक्टूबर 1943 में आजाद हिंदुस्तान की अंतरिम सरकार की घोषणा की। आजाद हिन्द फौज (INA) की तीन इकाइयों ने मई 1944 में पूर्वोत्तर भारत के इंफाल-कोहिमा क्षेत्र में जापानी सेना के साथ प्रवेश किया। यह हमला ब्रिटिश सेना ने विफल कर दिया। आजाद हिंद फौज के कई बड़े नेता गिरफ्तार किए गए। नेताजी ने विदेशों से भारत की आजादी की लड़ाई छेड़कर सभी को प्रेरणा दी।

प्रश्न 9. भारत की स्वतंत्रता में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ ने किस प्रकार योगदान दिया?
उत्तर- कांग्रेस को पता चला कि भारतीय जनता पूरी तरह से अंग्रेजों के खिलाफ है। गांधी उस समय बदल गए और कहा, “अंग्रेजों को अब तुरन्त भारत छोड़ना चाहिए, क्योंकि भारत पर जापानी आक्रमण को उनकी भारत में उपस्थिति प्रोत्साहन प्रदान कर रही है।”जुलाई 1942 के मध्य में हुई कार्यसमिति की बैठक ने महात्मा गांधी के विचारों का समर्थन किया। 8 अगस्त 1942 को बम्बई में हुए अखिल भारतीय राष्ट्रीय समिति के अधिवेशन में ब्रिटिश शासन के तत्कालीन अन्य भारत के लिए और मित्र राष्ट्रों के आदर्शों की पूर्ति के लिए भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित किया गया।“ब्रिटिश सरकार भारत की स्वतन्त्रता की घोषणा करे और शीघ्र ही अंग्रेज भारत परित्याग कर इंगलैंड चले जायें और भारत को उसके भाग्य पर छोड़ दें,” भारत छोड़ो प्रस्ताव में कहा गया था। कांग्रेस भारत की स्वतन्त्रता के लिए जन-आन्दोलन की व्यवस्था करेगी अगर ब्रिटिश सरकार ऐसा नहीं करेगी। “
गांधीजी ने यहां तक कह दिया कि “यह अन्दोलन मेरे जीवन का अन्तिम संघर्ष है । ” भारत छोड़ो प्रस्ताव के पारित हो जाने पर सरकार ने इस प्रकार निम्नलिखित प्रक्रिया व्यक्त की थी-
(1) कांग्रेस को एक अवैध संस्था घोषित कर दिया गया ।
(2) कांग्रेस के कार्यालयों पर पुलिस का अधिकार हो गया ।
( 3 ) कांग्रेस की सम्पत्ति पर सरकार का अधिकार हो गया ।
(4) कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं को बन्दी बनाया गया ।

आन्दोलन की प्रगति
(1) सदस्यों की बन्दी – सरकार को भारत छोड़ो-प्रस्ताव का पता चला, इसलिए उसने कांग्रेस की कार्यकारिणी के सभी सदस्यों को, गांधी जी को छोड़कर, 9 अगस्त की सुबह ही बन्दी बना लिया. कांग्रेस के अन्य सदस्यों को भी जेल में डाल दिया गया।

(2) साधनों पर प्रतिबन्ध – सरकार ने वे समस्त साधन बन्द कर दिए, जिनके द्वारा जनता सरकार की नीति के विरुद्ध शांतिमय साधनों द्वारा अपने भावों तथा विचारों को व्यक्त कर सके ।

( 3 ) हिंसात्मक कार्यवाही – जनता ने हिंसात्मक कार्यवाहियां आरम्भ कीं ताकि भारत में शासन व्यवस्था शिथिल हो जाए ।

(4) आजाद हिन्द सेना की स्थापना – सुभाषचन्द्र बोस की देखरेख में आजाद हिन्द सेना का गठन किया गया, जिससे विद्रोह की भावना को प्रोत्साहन मिला ।

(5) यातायात के साधनों पर प्रतिबन्ध – देश के बहुत-से भागों में रेलों का चलना बन्द हो गया । बलिया आदि कई स्थानों पर रक्तपात हुए । स्त्रियों का अपमान किया गया ।

(6) सरकार का दमन चक्र – सरकार ने अपने दमन चक्र से इस आन्दोलन को बन्द करने का घोर प्रयास किया ।

(7) कांग्रेस द्वारा आरोप का खण्डन – कांग्रेस पर हिंसात्मक कार्यवाहियों का आरोप लगाया गया, किन्तु कांग्रेस ने कहा कि सरकार की दमन नीति के कारण जनता ने हिंसात्मक कार्यों को अपनाया, जिससे वे अंग्रेजी राज्य का अन्त कर सकें । इसमें कांग्रेस का कोई दोष नहीं है।

(8) गांधी जी द्वारा अनशन गांधीजी ने 21 दिन का अनशन किया और वायसराय की कार्यकारिणी के तीन भारतीय सदस्यों ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिये ।

प्रश्न 10. ब्रिटिशों को भारत को आजादी देने के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर- 1. 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया था। युद्ध ने विश्व की शक्ति को बदल दिया। संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ दुनिया की सबसे बड़ी शक्तियाँ बन गए। ब्रिटेन ने युद्ध जीता था, लेकिन उसे आर्थिक और सैनिक हानि हुई थी ।
2. एटली ने लेबर पार्टी को 1945 के चुनाव में विजयी बनाया। लेबर पार्टी साम्राज्यवाद के खिलाफ थी और भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध थी।
3. बम्बई और कलकत्ता में हिंसा हुई। दुकानें लूटी गईं, थाने जलाए गए और सार्वजनिक परिवहन बंद कर दिया गया। सेना और वायुसेना ने भी उनका समर्थन किया। सत्ता के लिए ये विद्रोह निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण थे।

प्रश्न 11. बीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा भारत को आजादी देने के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – 1. जब विद्रोह के संकेत दिखाई देने लगे, ब्रिटिश भारत की सरकार अब राजतंत्र और सशस्त्र सेनाओं पर निर्भर नहीं रह सकती थी। अब वे अंग्रेजों की राष्ट्रीय क्रांति को कुचलने पर निर्भर नहीं रह सकते थे।

2. भारतीय जनता का विश्वास और कर्तव्यनिष्ठा स्पष्ट था। अब भारतवासी विदेशी शासन के अपमान को सहने के लिए तैयार नहीं थे, यह अंग्रेजों को स्पष्ट था।

3. कलकत्ता के विद्यार्थियों ने आजाद हिंद फौज के कैदियों की रिहाई की मांग की। 11 फरवरी, 1946 ई. को विद्यार्थियों ने आजाद हिन्द फौज के अधिकारी अब्दुर रशीद को सात वर्ष की सजा सुनाई जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया. 18 फरवरी, 1946 ई. को रॉयल इण्डियन नेवी ने बम्बई में हड़ताल कर दी। इन घटनाओं ने दिखाया कि लोगों में अंग्रेजों के प्रति तीव्र विरोध था।

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