NIOS Class 10 Psychology Chapter 22 संगठन का जगत

NIOS Class 10 Psychology Chapter 22 संगठन का जगत

NIOS Class 10 Psychology Chapter 22 संगठन का जगत – आज हम आपको एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान पाठ 22 संगठन का जगत के प्रश्न-उत्तर (The World of Organisation Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है । जो विद्यार्थी 10th कक्षा में पढ़ रहे है उनके लिए यह प्रश्न उत्तर बहुत उपयोगी है. यहाँ एनआईओएस कक्षा 10 मनोविज्ञान अध्याय 22 (संगठन का जगत) का सलूशन दिया गया है. जिसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप NIOSClass 10th Psychology Chapter 22 संगठन का जगत के प्रश्न उत्तरोंको ध्यान से पढिए ,यह आपकी परीक्षा के लिए फायदेमंद होंगे.

NIOS Class 10 Psychology Chapter 22 Solution – संगठन का जगत

प्रश्न 1. एक व्यवस्था के रूप में संगठन का स्वरूप तथा महत्त्व प्रतिपादित कीजिए ।
उत्तर- संगठन को काम करने के लिए एक नियम बनाया जाता है; अखिल भारतीय लेखक संघ के रूप में। भारत भर से लेखक एक मंच पर एकत्रित होकर लेखन और साहित्य के सन्दर्भ में राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य की सकारात्मक भूमिका, स्वस्थ समाज की स्थिति और सामाजिक यथार्थ पर चर्चा करते हैं; राष्ट्रीय मूलभूत समस्याओं से जूझते हुए साहित्य के सरोकारों पर चर्चा करते हैं और साहित्य की जनव्याप्ति पर विचार करते हैं। इसलिए, किसी भी संगठन को बनाने के लिए व्यवस्थित दृष्टिकोण और समन्वय की आवश्यकता स्पष्ट है। इसमें अक्सर लोग मिलकर मेरे लक्ष्य को पूरा करते हैं।

वास्तव में, संगठन एक सामाजिक इकाई है और इसे एक विशिष्ट लक्ष्य के लिए बनाया जाता है, इसलिए इसे एक प्रणाली (सिस्टम) या व्यवस्था के रूप में देखना चाहिए। प्रणाली के रूप में विचार उठते ही तीन प्रमुख बातें सामने आती हैं-
1. आपसी सम्बन्ध, 2. क्षमताएं, 3. विशिष्टताएं।

मुक्त व्यवस्था भी हो सकती है, जहां हर किसी के लिए द्वार खुले हैं। किसी भी विचारधारा से यहां परहेज नहीं है। बन्द प्रणाली बाहरी वातावरण से कोई संपर्क नहीं रखता, लेकिन बाह्य जगत से निरंतर संपर्क बना रहता है। ऐसे संगठनों को कुछ लक्ष्य होते हैं।
मुक्त संगठनों में निवेश, रूपांतरण और उत्पादन निरंतर होते रहते हैं। कोई भी यानी संगठन वातावरण से निवेश प्राप्त करता है और उसे उत्पादन में बदलता है। वातावरण इसे दे सकता है। वातावरण की आकांक्षाओं और चुनौतियों को पूरा करने के लिए कोई संगठन आवश्यक कार्रवाई करता है। यहां निवेश, उत्पादन और वातावरण की भूमिका को समझना आवश्यक है।

निवेश – निवेश का अर्थ है प्रवेश, स्थापन। इसमें मानक संसाधन, पूंजी, प्रौद्योगिकी, साज-सामान तथा जानकारी शामिल होती है और यह अपने वातावरण से प्राप्त किया जाता है। सामान्यतः या किसी भी निवेश को संगठन के भीतर उपयोग के लिए संसाधित किया जाता है, ताकि अपेक्षित फल (उत्पादन) प्राप्त किया जा सके।

उत्पादन – यह इच्छा से अथवा इच्छा के बिना दोनों ही प्रकार का हो सकता है अर्थात् ऐच्छिक अथवा अनैच्छिक । ऐच्छिक उत्पादन लक्षित उत्पादन होता है और इसे लक्ष्य करके प्राप्त किया जाता है।
अनैच्छिक उत्पादन में लक्ष्य अनचाहा होता है। इसमें संगठन (समूह) के सदस्यों के साथ अनौपचारिक सम्बन्ध आते हैं। यह अवश्य है कि अनचाहे परिणाम अवांछित नहीं होते । व्यक्ति उनकी कामना रखता है।

वातावरण – वातावरण कोई संगठन नहीं चलाता। वातावरण उसे अवश्य प्रभावित करता है। साथ ही यह प्रभाव अन्योन्याश्रित है, यानी वातावरण भी संगठन से प्रभावित होता है और संगठन भी वातावरण से प्रभावित होता है।
किसी प्रणाली में निवेश, आपूर्तिकर्त्ता, ग्राहक और अन्य संस्थाएं शामिल हैं। जैसे कपड़े लेना: सूत, जो कपास से बनता है, खेतों में उगाया जाता है, सूत से कपड़ा बनाया जाता है। कपास की अच्छी खेती खाद, पानी और मौसम पर निर्भर करती है, इसलिए कपास की अच्छी फसल से रुई निकाला जाता है। रुई काटा जाता है। कपड़ा सूत से बुना जाता है और उपभोक्ता इसे बाजार में आकर खरीदता है। दर्जी फिर कपड़े को आवश्यक आकार देता है। कपड़ा उत्पादन में बिजली, पानी, खाद, किसान, जुलाहे, व्यापारी आदि सभी संस्थाएं अपने-अपने स्तर पर एक पूरी प्रणाली की तरह काम करती हैं। कपड़े के लिए एक वातावरण बनाते हैं।

इसलिए संगठन शून्य नहीं है। वृहद समाज ही सामाजिक संस्थाओं को संचालित करता है। इसमें भी शामिल है। मानव और संगठन पारस्परिक रूप से जुड़े हैं, और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संगठनों के रूप ने समाज को बदल दिया है। नई तकनीकों ने काम में तेजी ला दी है। आज की सुविधाएं इसमें बहुत महत्वपूर्ण हैं। हाल ही में भारत एक कृषिप्रधान देश था, लेकिन आज कृषि के साथ-साथ अन्य उद्योगों ने लोगों की जिंदगी और जीवन स्तर को काफी बदल दिया है, उन्हें सुविधापूर्ण बनाया है। इस बदलाव से लोगों का दृष्टिकोण और जीवन-मूल्य बहुत बदल गए हैं। संगठन की उपप्रणालियां या उपवर्ग: किसी भी संगठन के कुछ हिस्से तथा उपप्रणालियां होती हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है।

लक्ष्य उपप्रणालियां – इसमें संगठन के विभिन्न विभाग तथा व्यक्तियों के विशेष लक्ष्यों के साथ-साथ समग्रता में संगठन के लक्ष्य तथा उद्देश्य शामिल हैं।

तकनीकी उपप्रणालियां – इसका सीधा सम्बन्ध संगठन में काम करने वाले लोगों के ज्ञान, क्षमता तथा कौशल से होता है, जिसमें उपकरणों का भली-भांति संचालन तथा प्रौद्योगिकी विकास भी शामिल हैं।

प्रबन्धकीय उपप्रणालियां – किसी संगठन का संचालन और गतिविधियों की लक्ष्य के प्रति अनुरूपता प्रबंधकीय ढांचे का निर्माण करती है। इसमें योजना निर्माण तथा समन्वय शामिल है। संरचनात्मक उपप्रणाली संगठन के सदस्यों के सामाजिक सम्बन्ध जो कुछ नियमों मानदण्डों तथा मूल्यों पर आधारित है लक्ष्य अभिमुख संगठन का स्वरूप निर्धारण में इसका बहुत महत्त्व है।

प्रश्न 2. संगठन की कार्य प्रणाली के प्रमुख निर्धारक कारक बताइए।
उत्तर- किसी भी संगठन में कार्यप्रणाली की दृष्टि से वातावरण के स्वरूप के निर्धारण में कई कारक प्रभावकारी भूमिका निभाते हैं। इनमें चार कारक विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं-
(ख) प्रौद्योगिकी
(क) संगठनात्मक ढांचा
(ग) बाहरी वातावरण
(घ) प्रबन्ध नीतियां तथा पद्धतियां

(क) संगठनात्मक ढांचा – संगठनात्मक ढांचा किसी भी संगठन की कार्यप्रणाली का सबसे बड़ा कारक होता है। किसी संस्था में अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संबंध का निर्धारण करने वाला संबंध है—सूत्र इससे पता चलता है कि कौन व्यक्ति क्या काम करेगा? किसी पक्ष की निगरानी, देखभाल और जिम्मेदारी होगी? उसमें पर्यवेक्षकों, निरीक्षकों, अधिकारियों और सहयोगियों के बीच एक अंत:वैयक्तिक संबंध सूत्र बनाया जाता है। यह सूत्र कितना मजबूत होगा, उतना ही सक्रिय होगा संगठनात्मक ढांचा। इसलिए, यह भी संगठन के प्रबंधकों द्वारा स्वीकृत ढांचे का एक हिस्सा है। किसी संगठन की भीतरी कार्यप्रणाली के लिए यह ढांचा बहुत महत्वपूर्ण है।सामान्यतः संगठनात्मक ढांचे के दो रूप होते हैं-
(क) विकेन्द्रीकृत ढांचा
(ख) केन्द्रीकृत ढांचा

(क) विकेन्द्रीकृत ढांचा – वह व्यवस्था है, जिसमें उच्च प्रबंधक अपने कर्तव्यों को अपने अधीनस्थों में विस्तीर्ण कर देता है और अधीनस्थों को अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करना होता है। इसका सीधा अर्थ है कि अधिकारियों को निर्णय लेने का अधिकार मिलेगा। दायित्व इस तरह श्रेणीबद्ध होगा। सबके सामूहिक दायित्व में समानाधिकार और सरोकार का बल मिलेगा, न कि एकाधिकार या अलगाववाद। यही असली प्रजातांत्रिक ढांचा है।

(ख) केन्द्रीकृत ढांचा – केन्द्रीय शक्ति (केंद्रीय अधिकारी) विकेन्द्रीकृत ढांचे की तुलना में अधिक बलशाली है। साथ ही, सबकी समान भागीदारी यहां असफल हो जाती है। यही कारण है कि सामन्तवादी व्यवस्था की दृढ़ता और कार्य के प्रति दबाव से यहां मिश्रित अरुचि और निस्संगता पैदा होने लगती है, जो किसी भी संगठन की स्थायित्व को चुनौती और अवरोधी बनाता है। इसलिए प्रजातांत्रिक संगठनात्मक ढांचा अधिक संबंधित है।

(ग) प्रौद्योगिकी – संगठन की कार्यप्रणाली को स्वस्थ, सक्रिय और विकासोन्मुख बनाने के लिए उसकी कार्यप्रौद्योगिकी भी अद्यतन रहनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एसेम्बली लाइन की परंपरागत प्रौद्योगिकी ने नियम बनाने पर जोर दिया, जिसने कठोर कार्यप्रणाली को प्रोत्साहित किया। इस कार्यप्रणाली में रचनाशीलता और विश्वास की कमी है, जबकि अधिक गतिशील और परिवर्तनशील प्रौद्योगिकी जैसे एयरोस्पेस यांत्रिकी में काम करने के लिए अधिक विश्वास और व्यक्तिगत जिम्मेदारी की जरूरत है।

(घ) बाहरी वातावरण – बाहरी घटनाएं और कारक भी कार्यप्रणाली में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे कर्मचारियों से सीधे जुड़े हुए हैं और संगठन के वातावरण को काफी प्रभावित करते हैं। यह समझने के लिए कहा जा सकता है कि कठोर आर्थिक परिस्थितियों में एक संगठन को अपने कर्मचारियों की संख्या कम करनी पड़ती है. जो कर्मचारी शेष रह जाते हैं, वे भविष्य के अस्थायित्व की चिंता से घिरे रहते हैं क्योंकि वे न जाने कब छंटनी में डाल जाएंगे। इससे संगठन की कार्यप्रणाली पर क्षमता की दृष्टि से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है; उत्साह मंद पड़ता है, नए खतरे उठाने की आंतरिक प्रेरणा समाप्त हो जाती है और सहायता की उम्मीद कम हो जाती है। इस प्रकार बाहरी परिस्थितियां संस्था की कार्यक्षमता पर प्रभाव डालती हैं।

(ङ) प्रबन्ध नीतियां तथा पद्धतियां – किसी भी संगठन के प्रबन्धक अधिक स्वतंत्र और प्रशंसात्मक होते हैं। वे सिर्फ संगठन में सहानुभूति और एकजुटता का वातावरण बनाने में मदद करते हैं, बल्कि सफलता और उन्मुखता का भी प्रदर्शन करते हैं। ऐसे में, संस्था के सदस्य अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अधिक जिम्मेदारी लेते हैं, जिससे संस्था की उत्पादकता बढ़ती है।

प्रश्न 3. किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
(i) सहकर्मचारियों से सम्बन्ध
(ii) कार्यक्षेत्र में उत्पादकता और उत्कृष्टता
(iii) कार्यक्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने की रणनीति

उत्तर- (i) कर्मचारियों से सम्बन्ध – कार्यस्थल पर व्यक्ति का अधिकांश समय सहकर्मियों और साथी समूहों के साथ बिताता है, जो उनके अनुभव को सीधे प्रभावित करता है। विनियम और विधान किसी औपचारिक संगठनात्मक ढांचे के नियम हैं। ऐसे में सहकर्मियों के साथ सम्बन्ध आम तौर पर विकसित नहीं हो पाते। लेकिन साथी समूह के साथ समान पसंद-नापसंद के आधार पर संबंध बनते हैं। कुछ कर्मचारी अपने सहकर्मियों के संरक्षण और सान्निध्य में ही काम करते हैं और उनकी आवश्यकता से अधिक निर्भर होते हैं। इसका सीधा प्रभाव यह है कि कर्मचारियों (सहकर्मियों) के बीच संवाद करने के अधिक अवसर मिलते हैं। साथ ही कर्मचारी परस्पर विश्वास बनाने और एक दूसरे से तुलना करने में सफल होते हैं। इसका एक लाभ यह है कि नवागन्तुक सहकर्मी को समुचित व्यवहार के लिए जोड़ीदार समूह के कामकाज सीखने का अवसर मिलता है।

उदाहरण के लिए, कोई कर्मचारी अपने साथी से जान सकता है कि अगर उनका मालिक पूछे कि वह कंपनी की नीति के बारे में क्या सोचता है, तो कर्मचारी को अपनी राय नहीं देनी चाहिए, भले ही उनका मालिक पूछे। कर्मचारी ऐसे कई अलिखित नियम अपने साथी समूह से सीखता है। नए कर्मचारी को सभी समूहों में अपनी निजी भावनाओं को व्यक्त करने का भी अवसर मिलता है, जो वह अपने वरिष्ठ या उच्च पदीय अधिकारी के सामने व्यक्त नहीं कर सकता था। यह स्पष्ट है कि कर्मचारियों का पारस्परिक संबंध कार्यस्थल पर नियम विधान अनुकूलन में सहायक है।

(ii) कार्यक्षेत्र में उत्पादकता और उत्कृष्टता – जब कोई संगठन लाभ उठाने वाले लोगों (शेयरधारकों, मालिकों, कर्मचारियों, ग्राहकों और स्थानीय समुदायों) की इच्छाएँ पूरी करने लगता है, तो वह प्रभावकारी माना जाता है। प्रभावकारिता का न्यूनतम स्तर प्राप्त करना उत्कृष्टता का मानदंड है, जो आगे चलकर मान्यता के स्तर पर प्रतिष्ठा का आधार बनता है, इसलिए इसे संगठन की कार्य क्षमता का सम्मान माना जाता है।

किसी भी संस्था को उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम लागत पर निवेश उत्पादन में रूपांतरित करने की क्षमता होनी चाहिए। कर्मचारियों की दृष्टि से संगठन के उत्पादन और उत्पादकता के मुद्दों का विश्लेषण करने से ही कार्य क्षमता में सुधार होता है। इसके अभाव में प्रतिष्ठा और उत्कृष्टता का लक्ष्य हासिल करना असम्भव है।

(iii) कार्यक्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने की रणनीति – कार्य स्थली पर किसी वस्तु की उत्पादकता और उत्कृष्टता बढ़ाना किसी भी संगठन के प्रबन्धक या संचालक का मुख्य सरोकार होता है । इसके लिए चार प्रमुख नीतियां अपनाई जाती हैं-
(क) कर्मचारियों का चयन व स्थापना
(ख) प्रशिक्षण तथा विकास
(ग) कार्य की निश्चित रूप रेखा
(घ) क्षमता – मूल्यांकन तथा पुरस्कार
पूर्वोक्त सभी नीतियों का विधिवत पालन करने से कार्यस्थली पर उत्पादकता व उत्कृष्टता का स्तर बढ़ाया जा सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top