NIOS Class 10 Psychology Chapter 18 मनोविकार और उनका उपचार
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NIOS Class 10 Psychology Chapter18 Solution – मनोविकार और उनका उपचार
प्रश्न 1. तनाव को परिभाषित कीजिए । विद्यार्थी जीवन में तनाव के मुख्य कारकों को बताइए और उनके प्रति सामान्य प्रतिक्रियाओं को भी बताइए ।
उत्तर – तनाव शब्द का अर्थ है- दबाव, यानी वर्तमान स्थिति से अलग होना यह आम तौर पर एक असहज स्थिति है। वास्तव में, ‘तनाव’ एक दर्दनाक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जो कुछ बाहरी और आन्तरिक आवश्यकताओं से उत्पन्न होती है। शरीर के किसी रोग के कारण शरीर की आन्तरिक जांच के लिए खून, पेशाब आदि की जांच करते समय कुछ रोगी परिणामों से परेशान होते हैं। परीक्षा के पास आते ही विद्यार्थी अपनी तैयारी के प्रति अनिश्चित हो जाते हैं। यह स्थिति तनाव को बढ़ाती है; जैसे हृदय की तेज धड़कन, माथे पर घबराहट, चेहरे पर पसीना आना, हाथ-पांव ठंडे होना, पेट में दर्द आदि।
उत्तेजना का कम स्तर अच्छे निष्पादन के लिए आवश्यक है, लेकिन अधिक उत्तेजना निष्पादन को खराब कर सकती है। तनाव हमेशा नकारात्मक नहीं होता; यह सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है। नकारात्मक तनाव दर्दनाक होता है, जबकि सकारात्मक तनाव आनन्ददायी होता है; उदाहरण के लिए, लक्ष्य, परीक्षा और लक्ष्य में सफलता से उत्पन्न उत्तेजना सुखदायी होती है; जैसे मृत्यु, असफलता या प्रतिकूलता आदि। सक्रियता के लिए कम से कम तनाव होना चाहिए। जब तनाव बहुत अधिक या बहुत कम होता है, तो समस्या आती है। तनाव का उच्चतम स्तर एक व्यक्ति को सामना करने में असमर्थ बनाता है, जबकि तनाव का निम्नतम स्तर व्यक्ति को निष्क्रिय बनाता है। तनाव के मनोवैज्ञानिक स्रोत शारीरिक, रासायनिक या संवेगात्मक (भावात्मक) अवस्था है जो शारीरिक या मानसिक तनाव पैदा करती है।
प्रश्न 2. द्वन्द्व व कुंठा किस तरह तनाव को बढ़ावा देते है ? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – वस्तुतः तनाव असन्तुलन की अवस्था है, जो अनेक कारणों से पैदा होती है। तनाव पैदा होने के विभिन्न कारणों में दो कारण प्रमुख हैं कुण्ठा तथा द्वन्द्व ।
कुण्ठा – यह एक नकारात्मक संवेगावस्था है, जो लक्ष्य तक न पहुंचने या रोकने पर होती है। आप कह सकते हैं कि लक्ष्य को प्राप्त करने के रास्ते में आने वाली बाधाएं अक्सर एक समूह बनाती हैं। यह अनुभव बाहरी या भीतरी हो सकता है। इस आधार पर दो प्रकार की कुण्ठा हो सकती है-
बाह्य कुण्ठा – जिसके कारण बाहरी होते हैं।
आन्तरिक कुण्ठा – जिसके कारण भीतरी होते हैं।
किसी काम में देरी, आर्थिक हानि या जीवन लक्ष्य में आने वाली कई बाधाएं बाहरी कुण्ठा में शामिल हैं। स्वयं व्यक्ति से जुड़े कारक अक्सर भीतरी अथवा वैयक्तिक कुण्ठा में शामिल होते हैं। चीजों को समय पर न करना, कल पर टालना, सच्चाई छुपाना, झूठ बोलना या किसी अनैतिक कार्य में प्रवृत्त होना ऐसे कारण हैं जिनके परिणाम भोगते हुए व्यक्ति को निराकरण का समय नहीं मिलता। ऐसे में सामाजिक अपमान का सामना करना कुण्ठा बनाता है। ऐसी परिस्थिति का कारण व्यक्ति होता है।
उदाहरण के लिए, जब कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जाता है या कोई बाधा उत्पन्न होती है, जैसे किसी बच्चे की कोई इच्छा पूरी नहीं की जाती, तो वह चीखना, चिल्लाना और फेंकना शुरू कर देता है। बच्चे इस तरह आक्रमणकारी मुद्रा को व्यक्त करता है।
अतः यह देखना होता है कि कुण्ठा के स्रोत की ओर सीधे आक्रमण न किया जाए। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। जैसे कोई व्यक्ति अपने निकटतम अधिकारी से कुण्ठित है। सीधे आक्रमण की स्थिति में अधिकारी की नाराजगी बढ़कर व्यक्ति की नौकरी भी खत्म कर सकती है। ऐसे में कुण्ठित व्यक्ति जब घर आता है और पत्नी द्वारा पेश की गई चाय पीता है, तो झुंझलाहट में चाय फेंककर मारता है और डांटते- फटकारते हुए कहता है- तुमने यह कैसी चाय बनाई है ? तुम्हें चाय बनानी भी नहीं आती। यानी कुण्ठा का परिणाम किसी और पर विस्थापित या पुनः निर्देशित आक्रमण होगा। यह किसी के प्रति कैसा भी हो सकता है। वह व्यक्ति अधिकारी से डांट खाकर अपने अधीनों पर गुस्सा उतारेगा।
कुण्ठा की दूसरी प्रतिक्रिया है- पलायन या रास्ता बदलकर चलना। ऐसे में व्यक्ति टकराहट में विश्वास नहीं रखता। वह अपनी
स्थिति को समझकर बचाव की योजना बनाता है। व्यक्ति नौकरी छोड़ देता है अगर अधिकारी नहीं करता है। पति-पत्नी नहीं बनते, तो तलाक लेकर अलग हो जाते हैं। इस प्रकार, बचाव की नीति पलायन बनती है। द्वन्द्व: द्वन्द्व शब्द में दो शब्द होते हैं। इसमें समस्या है। आपको दो में से एक का चुनाव करना होगा। जब एक व्यक्ति को अपनी असंगत आवश्यकताओं, कामनाओं, विचारों, रुचियों या व्यक्तियों में से एक का चुनाव करना पड़ता है, तो द्वन्द्व होता है। सामान्यतया द्वन्द्व की चार स्थितियां विचार योग्य हैं-
(क) उपागम उपागम द्वन्द्व
(ख) परिहार – परिहार द्वन्द्व
(ग) उपागम – परिहार द्वन्द्व
(घ) बहु-उपागम – परिहार द्वन्द्व
(क) उपागम – उपागम द्वंद्व – यह दो सकारात्मक लक्ष्यों के बीच द्वंद्व है, जो आकर्षक होते हैं। उदाहरण के लिए एक छोटे बच्चे से चॉकलेट या मिठाई में से किसी को चुनने के लिए पूछा जा सकता है। यहां पर बच्चा दोनों को लेना चाहेगा। वह दो सकारात्मक लक्ष्यों में से अपनी पसंद का निर्माण करता है।
(ख) परिहार – परिहार द्वन्द्व-यह दो नकारात्मक लक्ष्यों के बीच द्वन्द्व है। उदाहरण के लिए जिस नौकरी को आप नापसंद करते हैं, उसका चयन करना या आय की हानि करने वाले अवसर को अपनाना।
(ग) उपागम – परिहार द्वन्द्व-इस प्रकार के द्वन्द्व में व्यक्ति एक ही लक्ष्य द्वारा आकर्षित होता है । उदाहरण के लिए आप किसी से समर्थन मांगना चाहते हैं, लेकिन उसी समय आपको यह भय हो सकता है कि आपका अनुरोध अस्वीकृत हो सकता है।
(घ) बहुउपागम – परिहार संघर्ष – इस प्रकार के द्वन्द्व में व्यक्ति एक ही समय में अनेक द्वन्द्वों का सामना करता है। अतः एक स्थिति में अनेक सकारात्मक तथा नकारात्मक लक्ष्य सम्मिलित हो सकते हैं। जैसे अपने निवास स्थान से दूर नौकरी का चयन । नौकरी स्थायी, रुचिकर, मनोरंजक तथा अधिक वेतन वाली हो सकती है। इसी समय अपने परिवार से दूर रहना और अकेले पड़ जाने के कारण यह आपको विकर्षित कर सकती है।
प्रश्न 3. किन्हीं 5 मानसिक विकारों को बताइए और उनके मुख्य लक्षणों को विवरण दीजिए ।
उत्तर- मानसिक विकार निम्नलिखत हैं-
(1) व्यग्रता विकार – जब कोई व्यक्ति बिना किसी कारण के भय या चिन्ता से ग्रस्त रहता है, तो वह व्यग्रता विकार से पीड़ित होता है। व्यग्रता विकार के कई प्रकार होते हैं, जिनमें चिन्ता एवं भय भी विभिन्न रूपों में दिखायी देते हैं।
(2) मनोदशा विकार – इस मनोविकार से पीड़ित व्यक्ति एक ही मनोभाव पर स्थिर हो जाता है। अवसाद इस मनोदशा विकार का एक महत्त्वपूर्ण विकार है, जिसके लक्षण हैं- प्रसन्नता का अभाव, अशांत निन्द्रा, भूख कम होना, आलसी, वजन कम होना, तथा दूसरों के प्रति नकारात्मक भाव ।
(3) मनोदैहिक और दैहिक रूप विकार – इन विकारों के अन्तर्गत उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारियाँ आती हैं, जो तनाव एवं चिन्ता से उत्पन्न होती है।
(4) विघटनशील विकार – इस विकार में व्यक्ति अपनी समृति को खो बैठता है । उसे अपना पिछला अस्तित्व, घटनाएँ और आस-पास के लोगों को पहचानने में कठिनाई होती है। इस विकार में व्यक्ति का व्यक्तिगत समाज से पृथक हो जाता है।
(5) मनोविदलन विकार – यह एक गंभीर मानसिक विकार है। इस विकार का शिकार पागल, भूखे और भिखारी होते हैं। ये अशांत विचारों, भावों और व्यवहार हैं। इस बीमारी से पीड़ित लोग वास्तविकता से दूर रहते हैं और अक्सर झूठ और झूठ में खो जाते हैं।
प्रश्न 4. तनाव का सामना करने के वांछनीय तरीकों पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर – वस्तुतः शारीरिक या मनोवैज्ञानिक परिवर्तन तनाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए यह एक असहज अनुभव है, जो बेचैनी पैदा करता है और व्यक्ति को हमेशा तनाव से पैदा होने वाली समस्याओं को हल करने और नियंत्रण में रखने की कोशिश करता है। हटाना या रूपांतरित करना सबसे आसान तरीका है, हालांकि यह कभी-कभी संभव नहीं होता। यदि अंदरूनी परिस्थितियां हैं तो ऐसा भी हो सकता है। अक्सर बाहरी कारणों से ऐसा करना असंभव होता है। वास्तव में, कई चीजें तनाव कम कर सकती हैं। इनमें से प्रमुख कारक निम्नवत हैं-
(i) स्थिति को नियंत्रित करने की व्यक्ति की बोध क्षमता
(ii) व्यक्ति के व्यक्तित्व की बनावट
(iii) परिवार तथा संबंधों के जाल तंत्र की सहायता प्राप्ति
इसमें कुछ व्यक्ति तो तनाव सहने वाले तथा आशावादी होते हैं। कुछ तनाव के प्रति असहिष्णु तथा निराशावादी होते हैं। लेकिन स्थितियां कैसी भी हों, इनसे मुक्ति की युक्तियों के दो वर्ग हो सकते हैं-
(क) शारीरिक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना – तनाव की स्थिति में शरीर मांसपेशियों तथा हृदय की धड़कन के साथ कार्य करने के लिए तैयार रहता है। यह तनाव की स्थिति है। ऐसे में शरीर को शिथिल करके तनाव को कम या नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए दो साधान संभव हैं-
(i) व्यायाम द्वारा- इसमें योगासन, टहलना, तैरना आदि शरीर को सक्रिय करने वाली क्रियाएं शामिल हैं।
(ii) ध्यान के द्वारा– तीव्र भावनाओं को कम करने का यह वैज्ञानिक उपाय है। ध्यान सभी शक्ति केंद्रों को केंद्रित करता है। ध्यान, एकाग्रता, बौद्धिक शक्ति का उपयोग और विषयों की स्पष्टता से विशिष्ट स्वस्थ चिन्तन का विकास होता है।
ध्यान करने से क्रोध, चिन्ता, कुण्ठा और तनाव कम होते हैं। इन अनुशासनों और उनके परिणामों से इस प्रक्रिया को समझा जा सकता है-
मस्तिष्क में अनुशासन
– भावों का नियंत्रण
– सुस्थिर मन से रहना
– सहनशीलता
– स्व-प्रबंधन
शारीरिक व्यवहार में अनुशासन
– शरीर की सही स्थिति
– शांत आदतें
– डींग भरने के व्यवहार और अतिसक्रियता में कमी
– जीवन में अस्तित्व का आनंद लेना
वाणी में अनुशासन
– नगण्य व निरर्थक कथन से परहेज
– श्रवण शक्ति बढ़ाना
– मधुर शब्द
– विनम्र वाणी
कृति में जागरूकता वृद्धि
– जागरूक व्यवहार
– समय पूर्व प्रौढ़ (अकाल प्रौढ़ता )
– यथार्थवादी चिन्तन
संतुष्ट जीवन
– उत्साहपूर्ण
– संतुष्टि
– सादगी
(ख) अप्रभावी व्यवहार को बदलना – कई बार तनाव की प्रतिक्रिया के तरीके में बदलाव द्वारा भी तनाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए कुछ संभावित कदम निम्नलिखित हैं-
(i) मन्द गति – कार्यों को या चीजों को धीमे-धीमे करने का प्रयास करें। कार्य या चीज में सफलता पाना जरूरी होता है न कि पहले प्राप्त करना अतः जल्दी की चिन्ता किए बिना होने के बारे
(ii) संगठित करना – चीजों, कार्यों या व्यवहार का असंगठन तनाव पैदा करता है। यह व्यक्ति की प्रतिक्रिया को अस्त-व्यस्त में सोचना और करना महत्त्वपूर्ण होता है। कर देता है। यदि कार्य की एक सुनिश्चित रूपरेखा हो, तो तनाव में काफी कमी आ सकती है।
(iii) स्वयं की सीमा पहचानना – क्रमशः तथा प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य को निर्धारित करके उपयुक्त व औचित्यपूर्ण समय-सीमा तय करके कार्य-निष्पादन से अनावश्यक तनाव में कमी लाई जा सकती है।
(iv) सामाजिक समर्थन – घर – परिवार तथा निकट सम्बन्धी जनों के बीच समस्या रखकर व्यक्ति तनाव से मुक्त हो सकता है, क्योंकि ऐसी दशा में सहयोग भावना मनोबल बढ़ाने में सहायक होती है और व्यक्ति निश्चित होकर कार्य-निष्पादन करने में स्वयं को सक्षम अनुभव करता है ।
(v) असंगठित (अस्त-व्यस्त ) करने वाले विचारों की उपेक्षा – लक्ष्य से डरने से व्यक्ति अक्सर अपनी कमजोरी और अक्षमता का अनुभव करता है। व्यक्ति को लगता है कि वह कुछ नहीं कर सकता है। ऐसे में, यदि आपको लगता है कि आप जो संभव है, वही करेंगे और सरल कार्य-निष्पादन से काम शुरू करें, तो आप बिल्कुल कुछ नहीं कर पाने की बजाय कुछ कर पाएंगे और इससे आपको अपने काम में विश्वास होगा। इस तरह व्यक्ति हीन भावना और तनाव से मुक्त होगा। इसके अलावा, प्राणायाम से शारीरिक क्षमता का विकास होता है। सकारात्मक सोच तनाव कम करती है। साथ ही, लक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन करके अपनी क्षमता का पता लगाकर तनाव से बच सकते हैं।
मनोविकार और उनका उपचार के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. तनाव की विभिन्न प्रतिक्रियाओं की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – तनाव व्यक्ति जीवन की सामान्य प्रतिक्रिया है। इसमें भी कुछ तनाव अल्पकालिक होते हैं तथा कुछ दीर्घकालिक । दीर्घकालिक तनाव व्यक्ति की सामर्थ्य को प्रभावित करते हैं।
वस्तुतः तनाव की घटना व्यक्ति से प्रतिक्रिया की मांग करती है। तनाव की विभिन्न प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। इन्हें अध्ययन की दृष्टि से निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(क) संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएं
(ख) भावनात्मक प्रतिक्रियाएं
(ग) शारीरिक प्रतिक्रिया
इनकी व्याख्या निम्नलिखित रूप में की जा सकती है-
(क) संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएं – इनके अन्तर्गत तनावपूर्ण स्थिति से उपजी समस्याओं का मुकाबला करने के लिए चिन्तन पद्धति और उसका उपयोग करना आते हैं। तनावपूर्ण दशा में व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्रियाकलापों में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का बौद्धिक स्तर भिन्न होता है। इनमें कुछ भिन्नताएं निम्नवत होती हैं-
(i) विस्मरण (भूलना )
(ii) संशय ( अनिश्चय की स्थिति )
(iii) निर्णयात्मकता में कमी
(iv) एकाग्रता में कमी
(v) सीखने तथा याद रखने की गति तथा कार्यकुशलता में कमी
(vi) नकारात्मक तथा दूषित विचार
इनमें व्यक्ति – दर – व्यक्ति स्तर का भेद हो सकता है।
(ख) भावनात्मक प्रतिक्रियाएं– इन प्रतिक्रियाओं का सम्बन्ध व्यक्ति की संवेदनाओं से होता है। ऐसे में भावनात्मक स्तर पर तनाव की दशा में व्यक्ति निम्नलिखित प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर सकता है-
(i) चिन्ता,
(ii) अवसाद,
(iii) क्रोध,
(iv) चिड़चिड़ापन,
(v) संवेगात्मक रूप से लड़खड़ाना,
(vi) संवेगों पर नियंत्रण में कमी।
इस प्रकार व्यक्ति तनाव की दशा में भावनात्मक प्रतिक्रिया प्रकट करता है।
शारीरिक प्रतिक्रिया – तनाव के बाहरी कारणों से व्यक्ति की शारीरिक क्रियाएं प्रभावित होती हैं।
जैसे – (i) हृदय गति बढ़ना, नब्ज का तेजी से स्पंदित होना
(ii) मांसपेशियों में तनाव
(iii) गले व मुंह का सूखना
(iv) कम्पन हो उठना
(iv) जी मिचलाना
(vi) पेट में मरोड़ या दर्द उठना ।
इस तरह तनाव किसी भी कारण से हो, व्यक्ति द्वारा प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है।
प्रश्न 2. कुण्ठा व द्वन्द्व के बीच अन्तर बताइए ।
उत्तर – कुण्ठा एक नकारात्मक संवेगात्मक अवस्था है । यह किसी को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने से रोकने पर पैदा होती है। यह बाहरी तथा भीतरी दो प्रकार की होती है, जबकि द्वंद्व ऐसी स्थिति है जिसमें दुविधा, प्राथमिकता तथा मांगें सम्मिलित होती हैं तथा इन्हें साथ-साथ व्यवस्थित नहीं किया जा सकता। द्वन्द्व सामान्यतः उस समय उपस्थित होता है, जब व्यक्ति को विरोधी आवश्यकताओं, कामनाओं, विचारों, रुचियों या व्यक्तियों में से किसी एक का चुनाव करना पड़े।
प्रश्न 3. तनाव को किस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर – तनाव शारीरिक, मानसिक या संवेगात्मक अवस्था है, जिसमें शारीरिक या मानसिक तनाव होता है। यह एक अप्रिय शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिस्थिति है, जो कुछ आन्तरिक और बाहरी कारणों से होती है और व्यक्ति को नियंत्रित नहीं करती है।
प्रश्न 4. तनाव के विभिन्न पहलू क्या हैं?
उत्तर – तनाव के सामान्यतया दो पहलू होते हैं-
(क) सकारात्मक तनाव;
(ख) नकारात्मक तनाव
तनाव भी हमेशा बुरा नहीं होता। इसका सकारात्मक पक्ष खुशी देता है। जब कोई कठिन परीक्षा में सफलता प्राप्त करता है या उच्च स्तर की उपलब्धि प्राप्त करता है, तो उपजा तनाव सकारात्मक होता है। वेदना तनाव का नकारात्मक पक्ष है। इसमें चिंता, गुस्सा, क्रोध आदि भावनात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाई देती हैं।
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