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Class 12th History Chapter 14. विभाजन को समझना

Class 12th History Chapter 14. विभाजन को समझना

NCERT Solutions For Class 12th History Chapter- 14 विभाजन को समझना:–  जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है ,उन सब का सपना होता है कि वे बारहवी  में अच्छे अंक से पास हो ,ताकि उन्हें आगे एडमिशन या किसी नौकरी के लिए फॉर्म अप्लाई करने में कोई दिक्कत न आए .इसलिए आज हमने इस पोस्ट में एनसीईआरटी कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14 (विभाजन को समझना) का सलूशन दिया गया है जोकि एक सरल भाषा में दिया है .क्योंकि किताब से कई बार विद्यार्थी को प्रश्न समझ में नही आते .

इसलिए यहाँ NCERT Solutions History For Class 12th Chapter 14 Understanding the Partition दिया गया है. जो विद्यार्थी 12th कक्षा में पढ़ रहे है उन्हें इसे अवश्य देखना चाहिए . इसकी मदद से आप अपनी परीक्षा में अछे अंक प्राप्त कर सकते है. इसलिए आप Ch .14 विभाजन को समझना के प्रश्न उत्तरों ध्यान से पढिए ,यह आपके लिए फायदेमंद होंगे

Textbook NCERT
Class Class 12
Subject HISTORY
Chapter Chapter 14
Chapter Name विभाजन को समझना
Category Class 12 History Notes In Hindi
Medium Hindi

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

प्रश्न 1. 1940 के प्रस्ताव के ज़रिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?

उत्तर-1940 में मुस्लिम लीग ने जो प्रस्ताव पास किया, उसमें उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग की गई। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था। इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकंदर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेंबली को संबोधित करते हुए यह कहा था कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा के विरुद्ध हैं जिसमें “यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगहों पर हिंदू राज होगा…।” यदि पाकिस्तान का अर्थ यह है कि पंजाब में विशुद्ध मुस्लिम राज स्थापित होने वाला है तो मेरा उससे कोई संबंध नहीं है।” उन्होंने अपने विचारों को संघीय इकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ की स्थापना के समर्थन में फिर से दोहराया।

प्रश्न 2. कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत ही अचानक हुआ?

उत्तर- मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल प्रदेशों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से लेकर विभाजन होने के बीच बहुत ही कम समय लगा–केवल सात साल । कोई नहीं जानता था कि पाकिस्तान के गठन का क्या अर्थ होगा और उससे भविष्य में लोगों का जीवन कैसा होगा। 1947 में अपने मूल प्रदेश को छोड़कर नयी जगह जाने वाले अनेक लोगों को यही लगता था कि जैसे ही शांति स्थापित होगी, वे लौट आएँगे।
आरंभ में मुस्लिम नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की माँग पर कोई विशेष बल नहीं दिया था। स्वयं जिन्ना भी पाकिस्तान की सोच को सौदेबाज़ी में एक पैंतरे के रूप में ही प्रयोग कर रहे थे। इसका उद्देश्य सरकार द्वारा कांग्रेस को मिलने वाली रियायतों पर रोक लगाना तथा मुसलमानों के लिए और अधिक रियायतें प्राप्त करना था। दूसरे विश्व युद्ध के कारण अंग्रेजों को स्वतंत्रता की औपचारिक वार्ताएँ कुछ समय के लिए टालनी पड़ीं। परंतु 1942 में आरंभ हुए विशाल भारत छोड़ो आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को झुकना पड़ा और संभावित सत्ता हस्तांतरण के लिए भारतीय पक्षों के साथ बातचीत के लिए तैयार होना पड़ा।

प्रश्न 3. आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?

उत्तर- आम लोग विभाजन को भिन्न-भिन्न तरह से देख रहे थे
(1) कुछ लोगों को लगता था कि शांति के स्थापित होते ही, वे अपने-अपने घरों को लौट जाएँगे। वे इसे कोई स्थायी प्रक्रिया नहीं मान रहे थे।
(2) मारकाट से बचे कुछ लोग इसे मारी-मारी, मार्शल-लॉ, रौला, हुल्लड़ आदि शब्दों से संबोधित कर रहे थे।
(3) कई लोग इसे एक प्रकार का गृहयुद्ध मान रहे थे।
(4) कुछ ऐसे भी लोग थे जो स्वयं को उजड़ा हुआ और असहाय अनुभव कर रहे थे। उनके लिए यह विभाजन उनसे बचपन की यादें छीनने वाला तथा मित्रों तथा रिश्तेदारों से तोड़ने वाला मान रहे थे।

प्रश्न 4. विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?
अथवा
विभाजन के सामाजिक प्रभावों ( परिणामों) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा ‘
भारत के विभाजन को भारत और पाकिस्तान के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- भारत का विभाजन 1947 में हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में आया। यह विभाजन भारत तथा पाकिस्तान दोनों के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ था, क्योंकि अब तक दोनों का इतिहास एक ही रहा था। परंतु अब यह दो
अलग-अलग धाराओं में बहने लगा। निम्नलिखित तथ्य भी इस बात की पुष्टि करते हैं।
1. यह बँटवारा संप्रदायों के नाम पर हुआ था। इससे पहले ऐसा बँटवारा कभी नहीं हुआ था।
2. पहली बार दोनों देशों के लोगों की अदला-बदली हुई थी। भारत से अधिकतर मुसलमान पाकिस्तान चले गए, जबकि पाकिस्तानी प्रदेश में बसे बहुत-से हिंदू तथा सिख भारत में आ गए।
3. दोनों देशों की जनता के बीच बड़े पैमाने पर मारकाट तथा आगजनी हुई। सदियों से एक-दूसरे के साथ मेल-मिलाप से रहने वाले लोग ही एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए। इस हिंसा में सरकारी मशीनरी का कोई हाथ नहीं था।
4. हज़ारों लोगों को अपने उजड़े हुए घर-परिवार फिर से बसाने पड़े। इसके लिए उन्हें घोर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
5. औरतों को अत्यधिक अपमान तथा ठोकरों का सामना करना पड़ा। न जाने कितनी औरतों के साथ बलात्कार हुआ और उनका अपहरण किया गया। उन्हें बार-बार खरीदा/बेचा गया। इस प्रकार उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं।
6. दोनों ओर के कट्टरपंथियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सदा के लिए जहर भर गया। पाकिस्तान तथा भारत के कट्टरपंथी आज भी समय-समय पर एक-दूसरे के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं।
7. स्वतंत्रता के पश्चात् भारत ने धर्म-निरपेक्षता की नीति अपनाई, जबकि पाकिस्तान एक इस्लामी राज्य बन गया।

प्रश्न 5. उन कारणों का वर्णन करो जिनके कारण भारत का विभाजन हुआ।
अथवा
भारत का बँटवारा क्यों किया गया?

उत्तर- भारत का विभाजन अंग्रेज़ी सरकार की नीतियों की चरम सीमा तथा सांप्रदायिक दलों द्वारा उत्पन्न जटिल स्थितियों का परिणाम था। अंग्रेज़ी सरकार आरंभ से ही ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति पर चल रही थी। उनकी इस नीति के परिणामस्वरूप देश के सांप्रदायिक दलों को बल मिला। उन्होंने एक-दूसरे के विरुद्ध घृणा और द्वेष की भावना फैलाकर देश के विभाजन की भूमिका तैयार की। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी ।
1. ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति-1857 ई० के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपना ली। उन्होंने भारत के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के प्रति खूब लड़ाया। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक-दूसरे से घृणा करने लगे।
2. मुस्लिम लीग के प्रयत्न-1906 ई० में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। फलस्वरूप हिंदू-मुस्लिम भेदभाव बढ़ने लगा। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समाज में सांप्रदायिकता फैलानी आरंभ कर दी। 1940 ई० तक हिंदू-मुस्लिम भेदभाव इतना बढ़ गया कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की माँग की। |
3. कांग्रेस की कमजोर नीति-मुस्लिम लीग की माँगें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। 1916 ई० के लखनऊ समझौते के अनुसार कांग्रेस ने सांप्रदायिक चुनाव-प्रणाली को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस की इस कमजोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की माँग करनी आरंभ कर दी।
4. सांप्रदायिक दंगे-पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ आरंभ कर दी और सारे देश में सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इन दंगों को केवल भारत-विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।
5. अंतरिम सरकार की असफलता-1946 ई० में बनी अंतरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को साथ-साथ कार्य करने का अवसर मिला, परंतु लीग कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में कोई-न-कोई रोड़ा अटका देती थी। परिणामस्वरूप अंतरिम सरकार असफल रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि हिंदू और मुसलमान एक होकर शासन नहीं चला सकते।
6. इंग्लैंड द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा-20 फरवरी, 1947 को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऐटली ने जून, 1948 ई० तक भारत को छोड़ देने की घोषणा की। घोषणा में यह भी कहा गया कि अंग्रेज़ केवल उसी दशा में भारत छोड़ेंगे जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हो जाएगा, परंतु मुस्लिम लीग पाकिस्तान प्राप्त किए बिना किसी समझौते पर तैयार न हुई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारत-विभाजन की योजना बनानी आरंभ कर दी।
7. भारत का विभाजन-भारत-विभाजन के उद्देश्य से लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भारत भेजा गया। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से एक ही मास में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया। आखिर 1947 ई० में भारत को दो भागों में बाँट दिया गया।

प्रश्न 6. बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
अथवा
बँटवारे का औरतों पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
बँटवारे के उन हिंसक दिनों में महिलाओं के भयानक अनुभवों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- बँटवारे के समय औरतों के बहुत ही कटु अनुभव रहे
1. उनके साथ बलात्कार हुए और उनका अपहरण करके उन्हें बार-बार खरीदा और बेचा गया।
2. उन्हें अजनबियों के साथ जिंदगी बिताने के लिए मजबूर किया गया।
3. परिवार के सम्मान की रक्षा के नाम पर उन्हें मार डाला गया अथवा मरने के लिए विवश किया गया। इस कारनामे को बहादुरी और शहीदी का नाम दिया गया।
4. कई औरतों ने अपनी इज्ज़त की रक्षा के लिए आत्महत्या कर ली। उन्हें शत्रु के हाथ में पड़ना पसंद नहीं था।
5. उनके बारे जो निर्णय लिए गए उनमें उनकी सलाह नहीं ली गई। दूसरे शब्दों में अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने के उनके अधिकार की उपेक्षा कर दी गई।
6. भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही देशों की सरकारों ने औरतों के प्रति कोई संवेदनशील रुख नहीं अपनाया। कई मामलों में घर बसा चुकी औरतों को पुनः उनके देश वापिस भेज दिया गया। इस प्रकार उनकी जिंदगी बरबाद हो गई और परिवार उजड़ गया।

प्रश्न 7. बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?
अथवा
कांग्रेस ने पंजाब को दो भागों में विभाजित करने के पक्ष में वोट क्यों दिया?

उत्तर- कांग्रेस विभाजन के विरुद्ध थी। परंतु मार्च, 1947 में कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब को मुस्लिम बहुल और हिंदू सिख-बहुल दो भागों में बाँटने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। कांग्रेस ने बंगाल के संबंध में भी यही सिद्धांत अपनाने का सुझाव दिया। अंकों के खेल में उलझकर पंजाब के बहुत-से सिख और कांग्रेसी नेता भी यह मानने लगे कि अब विभाजन कड़वी सच्चाई बन चुका है, जिसे टाला नहीं जा सकता। उन्हें लगता था कि वे अविभाजित पंजाब में मुसलमानों से घिर जाएँगे और उन्हें मुस्लिम नेताओं की दया पर जीना पड़ेगा। इसलिए वे भी विभाजन के पक्ष में हो गए। बंगाल में भी भद्रलोक बंगाली हिंदुओं का जो वर्ग सत्ता को अपने हाथ में रखना चाहता था, वह यह सोचता था कि विभाजन न होने पर वे “मुसलमानों के स्थायी गुलाम बनकर रह जाएँगे। संख्या की दृष्टि से वे कम थे। इसलिए उनको लगता था कि प्रांत के विभाजन से ही उनका राजनीतिक प्रभुत्व बना रह सकता है। :

प्रश्न 8. मौखिक इतिहास के फ़ायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है ?
अथवा
भारत के विभाजन जैसी घटना के अध्ययन में मौखिक इतिहास के महत्त्व का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
अथवा
मौखिक इतिहास के लाभों और हानियों का वर्णन कीजिए। ऐसे किन्हीं चार स्रोतों का उल्लेख कीजिए जिनसे विभाजन का इतिहास सूत्रों में पिरोया गया है।

उत्तर- मौखिक इतिहास से अभिप्राय लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से है। इन अनुभवों की जानकारी लोगों के साक्षात्कार (Interview) द्वारा प्राप्त की जाती है।

मौखिक इतिहास की लाभ-हानियाँ-(1) मौखिक इतिहास का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे घटनाओं को सजीव बनाया जा सकता है।
(2) इससे ग़रीबों और कमज़ोरों के अनुभवों को भी जाना जा सकता है जो प्राय: उपेक्षा का शिकार रहे हैं; क्योंकि इतिहास इन लोगों के बारे में अधिकतर चुप ही रहता है।
(3) मौखिक इतिहास की हानि यह है कि यह स्मृतियों पर आधारित होता है। अतः इसे पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना : जा सकता।

मौखिक इतिहास के स्रोत-विभाजन से संबंधित मौखिक इतिहास के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं
(1) विभाजन की त्रासदी झेल चुके वे लोग जो अब तक जीवित हैं अथवा जो अपने अनुभवों का ब्यौरा अपनी संतानों को दे गए हैं।
(2) विभाजन के समय ध्वस्त हुए अथवा जला दिए गए भवनों के मूक अवशेष।
(3) मानववादी स्वयंसेवकों के अनुभव।
(4) शरणार्थी के रूप में भारत से पाकिस्तान गए तथा पाकिस्तान से भारत आए लोगों की आपबीती।

मौखिक इतिहास और विभाजन के बारे में हमारी समझ-मौखिक इतिहास से भारत-विभाजन के बारे में हमारी समझ को काफ़ी विस्तार मिला है। सरकारी रिपोर्टों में आँकड़े तो मिल जाते हैं, परंतु लोगों के कष्टों तथा कठिनाइयों का विस्तार से पता नहीं चल पाता। उदाहरण के लिए सरकारी रिपोर्टों से भारतीय और पाकिस्तानी सरकारों द्वारा ‘बरामद की गई औरतों की अदला-बदली की संख्या का तो पता चल जाता है, परंतु उन औरतों पर क्या बीती, इसके बारे में तो वही औरतें ही बता सकती हैं जिन्हें विभाजन के दौरान कठिनाइयों तथा कष्टों का सामना करना पड़ा।

विभाजन को समझना के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

इस पोस्ट में class 12 History Chapter 14 Vibhajan Ko Samjhana Class 12 History Chapter 14 विभाजन को समझना Notes In Hindi Class 12 History Chapter 14 Objective Questions Class 12 History Chapter 14 notes in hindi कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14 विभाजन को समझना” के सभी प्रश्न उत्तर  से संबंधित काफी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है यह जानकारी फायदेमंद लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और इसके बारे में आप कुछ जानना यह पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट करके अवश्य पूछे.

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