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लोकतंत्र की चुनौतियाँ Class 10th Political Science Chapter 8. Solution

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लोकतंत्र की मूल चुनौतियाँ क्या हैं?
अथवा
आजकल लोकतंत्र को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

उत्तर-  लोकतंत्र एक प्रकार की सरकार जो जनता द्वारा चुनी जाती है तथा इसे जनता द्वारा शासित किया जाता है। परंतु आजकल लोकतंत्रों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तथा वे हैं :

(क) पहली चुनौती है लोकतंत्र के न होने का तथा लोकतंत्र लाने की, इसके साथ ही लोकतांत्रिक सरकार का संस्थाकरण हो जाता है। इस चुनौती में अलोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंकने तथा स्वैः प्रभुत्व वाली सरकार को स्थापित करना भी शामिल है।
(ख) दूसरी चुनौती है विस्तार की चुनौती। इसमें लोकतंत्र के सभी नियमों को हरेक स्थान पर लागू करना शामिल है।
(ग) तीसरी चुनौती है लोकतंत्र को मजबूत करने की जिसमें लोकतंत्र तथा उसकी संस्थाओं को मज़बूती देना शामिल है।

प्रश्न 2. लोकतंत्र में लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती क्या है?

उत्तर-  विभिन्न प्रकार के लोकतंत्र को मजबूत करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इन्हें किसी-न-किसी प्रकार से मज़बूत किया जाना चाहिए। यह कार्य इस प्रकार करना चाहिए कि लोगों को पता चले कि लोकतंत्र से क्या आशाएँ हैं। जनता की अलग-अलग आवश्यकताओं के कारण इस चुनौती के अलग-अलग समाजों में अलग-अलग अर्थ हैं । लोकतंत्र में जनता की भागीदारी लोकतंत्र को मज़बूती दे सकती है।

प्रश्न 3. जातिवाद का क्या अर्थ है? इसके क्या परिणाम है?

उत्तर-  जाति शब्द को समाज के अलग-अलग वर्गों के लिए प्रयोग किया जाता है। जाति एक अंतर्वैवाहिक समूह है जो अपने सदस्यों पर कछ प्रतिबंध रखता है। इस अर्थ में जातिवाद यह कहता है कि हरेक जातीय समूह दूसरे समूह से अलग समुदाय है। इसलिए ही अलग-अलग जातीय समूह एक-दूसरे से अलग हैं तथा उनके हित भी एक-दूसरे से अलग हैं। जाति व्यवस्था में समाज अलगअलग अंतर्वैवाहिक समूहों में बँटा हुआ था। इसलिए जातिवाद एक विचारधारा है जो यह कहता है कि व्यक्ति की जाति और जातियों से उच्च है तथा इसकी और जातियों पर सत्ता स्थापित होनी चाहिए। इसके परिणाम सामाजिक विभाजन के रूप में सामने आते हैं। समाज अलग-अलग हिस्सों में बँट जाता है तथा इससे समाज में तनाव तथा संघर्ष शुरू हो जाता है।

प्रश्न 4. क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है? इस समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है?

उत्तर-  क्षेत्रवाद एक विचारधारा है जिसमें एक विशेष क्षेत्र के लोग इस बात में विश्वास करने लग जाते हैं कि इसका केंद्रीय सत्ता की तरफ से उत्थान नहीं हो रहा है तथा इसकी उन्नति होनी चाहिए। इसलिए ही वह इस भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर देते हैं। यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है जोकि देश की एकता के लिए ख़तरा बन सकती है। इसके लिए सही क्षेत्रीय विकास की आवश्यकता है। सरकार को प्लान बनाते समय सभी क्षेत्रों का समान ध्यान चाहिए। क्षेत्र के स्थानीय स्रोतों को इसके विकास के लिए प्रयोग करना चाहिए तथा सभी क्षेत्रों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शक्तियाँ दी जानी चाहिए।

प्रश्न 5. भारत में बढ़ते हुए संप्रदायवाद के क्या कारण हैं ?

उत्तर-  भारत में संप्रदायवाद के बढ़ने के निम्नलिखित कारण हैं:

(क) धार्मिक रूढ़िवादिता: साम्प्रदायिकता के बीज बोने का एक महत्वपूर्ण तत्व धार्मिक रूढ़िवादिता है।
(ख) विभिन्न धर्मों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास: एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों पर विश्वास नहीं है। अविश्वास की भावना ही साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है।
(ग) राजनीति और धर्मः साम्प्रदायिकता का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि राजनीति में धर्म शामिल है। धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया जाता है।

प्रश्न 6. “शिकायतों को लोकतंत्र की सफलता का प्रमाण किस प्रकार माना जाता है?” तीन तथ्यों की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-  (क) लोकतंत्र में अगर सरकार से किस प्रकार की शिकायत की जाए तो इससे सरकार उस शिकायत को दूर करने का प्रयास करती है। इससे सरकार उत्तरदायी बन जाती है तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया अच्छी हो जाती है।
(ख) लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है। अगर कोई शिकायत करता है तो सरकार अपने आपको सुधारने का प्रयास करती है। इस प्रकार लोकतंत्र सुदृढ़ होता है तथा लोकतंत्र में सुधार होता है।
(ग) शिकायत करने से सरकार नागरिकों के कल्याण के प्रयास करने शुरू कर देती है जिससे लोकतंत्र सफल हो जाता है।
(घ) लोकतंत्र में जनसंचार के साधन सरकारी नीतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करते हैं जिससे सरकार अगली नीतियाँ बनाते समय पिछली गलतियाँ नहीं करती। इससे भी लोकतंत्र की सफलता का प्रमाण मिलता है।

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