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लार्ड वेलेजली की सहायक संधि क्या थी ? इसके गुण और अवगुण

लार्ड वेलेजली की सहायक संधि क्या थी ? इसके गुण और अवगुण

sahayak sandhi in Hindi – भारत में अंग्रेजी राज्य की शुरुआत प्लासी की लड़ाई के बाद हो गयी थी इस प्रकार भारत का पहला गवर्नर जनरल वार्रन हास्टिंग्स बना  जिसका कार्यकाल  1773 से 1785 तक था . भारत में अंग्रेजी राज को अधिक मजबूत बनाने के लिए 2  गवर्नर जनरल ने काम किया था.  1798 में   लॉर्ड वैलेस्ली  गवर्नर जनरल बनकर भारत आया  जिसने सबसे पहले भारत में अंग्रेजी साम्राज्य को मजबूत बनाने का  काम किया था . लॉर्ड वैलेस्ली  अपने से  पहले गवर्नर  जनरल की आलोचना करता था .  लॉर्ड वैलेस्ली  के अनुसार यदि पहले वाले  गवर्नर जनरल काम करते तो आज सारे भारत पर अंग्रेजो का कब्ज़ा होता . वह भारत में अंग्रेजी राज्य को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए . लार्ड वेलेजली का कार्यकाल 1798-1805 तक था . वैलेस्ली भारत की गतिविधियों में रूचि लेने लग जाता है . वह भारत के हर  कार्य में हर बार कंपनी को  उपर रखता था . लॉर्ड वैलेस्ली ने तीन प्रकार की नीति की शुरुआत की, जिसमे सबसे ज्यादा आवश्यक सहायक संधि है . लॉर्ड वैलेस्ली ने साम्राज्य विस्तार के लिए और भी तरीके अपनाये थे .

सहायक संधि का अर्थ

सहायक संधि दो शब्दों  के मेल से बना है . इसका अर्थ है :- आपस में  सहायता  की जाने वाली  संधि . अंग्रेज इस संधि  से  भारत के राजाओ  की सहायता करने का दिखावा कर रहे थे  इसके पीछे अंग्रेजो का उदेश्य भारत के राजाओ की शक्ति को कमजोर करना था . इस संधि का असली रूप तो यह था कि भारत की रियासतों  को किसी भी प्रकार से अंग्रेजो  पर निर्भर करना था . इस संधि से भारत को स्वीकार करने पर भारत के विदेशी  और आंतरिक व्यवस्था में अंग्रेजो का हस्तक्षेप शुरू हो गया था . इस प्रकार भारत के सभी रियासत अंग्रेजो पर आश्रित हो गये . सहायक संधि को स्वीकार करने वाले राज्यो के लिए निम्न शर्ते थी :-

  • सहायक संधि को स्वीकार करने वाला राज्य का  विदेश नीति के बारे में सारे अधिकार कम्पनी के पास हो जाते है |
  • यदि सहायक संधि वाला  राज्य से  किसी भी राज्य से  युद्ध, संधि ,मित्रता आदि सभी अधिकार कम्पनी के पास होंगे |
  • सहायक संधि को मानने वाला राज्य किसी भी यूरोपीय या अंग्रेजो के दुश्मनो की सहायता नहीं करेगा और उन के किसी भी व्यक्ति को नौकरी नही देगा |
  • संधि को स्वीकार करने वाली रियासत कम्पनी की एक सेना को रखेगा जिसका सारा खर्चा राज्य को देना होगा |इस सेना को चलाने का अधिकार केवल कंपनी को होगा |
  • यदि सेना का खर्चा देने में राज्य असमर्थ है तो वह अपना कोई  भी क्षेत्र कम्पनी को दे देगा |
  • सहायक संधि को स्वीकार करने वाला राज्य को दरबार में एक अंग्रेजी रेजिडेंट को रखना होगा जिसकी सलाह के अनुसार राज्य का शासन  चलाया जायेगा |
  • संधि को स्वीकार करने वाली रियासत की सुरक्षा कंपनी करती थी और राज्य के किसी भी आंतरिक मामले के हस्तक्षेप नही करेगी |
  • कंपनी और शासक के बीच में झगड़े होने पर गवर्नर जनरल से बात करके झगड़े को निपटाया जायेगा |

इस प्रकार सहायक संधि लॉर्ड वैलेस्ली का अचूक शस्त्र था सहायक संधि नामक जाल में आने के बाद कोई भी रियासत / शासक की बाहर आने की सम्भावना लगभग नहीं  रहती थी . इस प्रकार लॉर्ड वैलेस्ली ने  देशी राजाओ पर दबाव बनाकर सहायक संधि के द्वारा भारत की रियासतों को अंग्रेजो पर निर्भर कर दिया |

सहायक संधि को स्वीकार करने वाले राज्य

सहायक संधि को स्वीकार करने वाले राज्य निम्नलिखित है  अंग्रेजो ने भारत के विभिन्न राज्यों पर लागु किया था :

1. हैदराबाद : निजाम पहले से ही अंग्रेजो का मित्र था लेकिन खुर्दा के युद्ध के बाद उसका अंग्रेजो पर से  विश्वास खत्म हो गया था | वेलेजली ने बातचीत की और टीपू के भय से उसने सबसे पहले सहायक संधि को स्वीकार करने   के लिए निजाम के मंत्री मीर आलम   को अपने पक्ष में कर लिया   और निजाम ने सहायक संधि को 1798 ई  में स्वीकार कर लिया.

  • हैदराबाद के आकर के अनुसार हैदराबाद की सुरक्षा के लिए 6 सैन्य बटालियन रखी गई .
  • इस सेना के रख रखाव के लिए 24 लाख रुपया अंग्रेजो को देना तय  किया गया

.2. अवध :  जिस प्रकार  हैदराबाद के निजाम  से संधि का प्रस्ताव रखा गया उसी प्रकार अवध के नवाब के सामने  भी इसी प्रकार का प्रस्ताव रखा गया . अवध हमेशा ही अंग्रेजो का मित्र रहा था . नवाब ने कहा की वह तो हमेशा ही अंग्रेजो के प्रभाव में है तो  उसको इस  संधि की क्या जरूरत है . परन्तु लॉर्ड वैलेस्ली ने नवाब पर दबाव बनाया इस प्रकार नवाब ने  भी 1801 में  इसे स्वीकार कर लिया .

  • सेना के खर्च के बदले नवाब ने रूहेलखंडगंगा और  यमुना के बीच का Area अंग्रेजो के दे दिया जिससे अंग्रेज Tex की वसूली करते थे .
  • अंग्रेजो  ने  नवाब से सैनिको की Training के लिए  इलाहाबाद का दुर्ग भी ले लिया .

3. मैसूर :  मैसूर का शासक टीपू सुल्तान था . जिसने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया था . उसके अंग्रेजो से मतभेद हो गये थे .  जिस कारण दोनों में युद्ध हुआ . इस युद्ध में टीपू सुल्तान  मारा गया और अन्ग्रेजो की जीत हुई .इस प्रकार यूरोपियो का प्रभाव भारत में कम हो गया. मैसूर में अंग्रेजो ने वाडियार वंश के नाबालिक को   शासक  बनाया और मैसूर  ने भी इस तरह इस संधि को स्वीकार कर लिया .

4. मराठा :   लॉर्ड वैलेस्ली ने मराठा संघ के लिए युद्धों का सहारा लिया . अंग्रेजो ने फुट डालो शासन करो की नीति के द्वारा  मराठाओ की शक्ति को 5 समूह में बाँटवा  कर मराठा शक्ति को कमजोर कर दिया . इस प्रकार एक एक करके सभी ने इसको स्वीकार कर लिया . जैसे :-

  • मराठा  पेशवा ने   सन 1802 में  सहायक संधि को स्वीकार कर लिया .
  • भौसले सिंधिया ने 1803  में  सहायक संधि को स्वीकार कर लिया .
  • गायकवाड ने सन 1804 में  सहायक संधि को स्वीकार कर लिया .
  • होल्कर मराठा ने इस संधि को 1805 में  स्वीकार कर लिया .

इस प्रकार सभी मराठा सरदार इस संधि के अधीन आ गये और अपनी सवतंत्रता को खो दिया और अंग्रेजो की कंपनी को सर्वोच्च मान लिया. अंग्रेजो के लिए यह एक वरदान के रूप में सिद्ध हुई और भारतीय शासको के लिए एक अभिशाप बन गई .

5  अन्य राज्य :  छोटे छोटे राज्य जो Area में तो छोटे थे पर उनका भारत में  महत्वपूर्ण स्थान था इस प्रकार के राज्यों पर लॉर्ड वैलेस्ली ने  दबाव बनाकर सहायक संधि के अंदर शामिल कर लिया इस जैसे  :- कर्नाटक ,तंजौर ,व सुरत आदि .

सहायक संधि के गुण

सहायक संधि लॉर्ड वैलेस्ली की एक सोची समझी  कूटनीति चाल थी . इस सहायक संधि के सभी पक्ष अंग्रेजो के लिए लाभदायी थे जैसे :-

  • सहायक संधि को मानने वाले सभी राजा कमजोर हो गये थे इसका कारण ये था कि उनके पास कोई सेना ही नहीं थी इस प्रकार वे अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ाई की सोच भी नहीं सकते थे .
  • सहायक संधि को स्वीकार करने वाला राज्य का  विदेश नीति के बारे में सारे अधिकार कम्पनी के पास हो जाते है | परन्तु वास्तव ने पूरे राज्य पर कंपनी का कब्ज़ा हो जाता था .
  • सहायक संधि को मानने वाला राज्य किसी भी यूरोपीय या अंग्रेजो के दुश्मनो की सहायता या किसी भी व्यक्ति को नौकरी देने पर रोक लगा कर  यूरोपीय कंपनी को कमजोर कर दिया .
  • कंपनी को किसी भी ज्यादा खर्च के बिना बड़ी सेना रख पाई . सेना पर पूरा नियंत्रण कंपनी का होता था .
  • कंपनी सेना पर लगने से ज्यादा धन लेती थी और इस प्रकार भारतीय राजा कमजोर होते गये
  • सहायक संधि को स्वीकार करने वाला राज्य को दरबार में एक अंग्रेजी रेजिडेंट को रखना होगा जिसकी सलाह के अनुसार राज्य का शासन  चलाया जायेगा.
  • सेना को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी क्योकि सभी राजाओ ने इसको स्वीकार करने के बाद में कोई भी  राज्य आपस में लड़ाई नहीं करते थे .

सहायक संधि के अवगुण

सहायक संधि जिस प्रकार अंग्रेजो के लिए जितनी लाभकारी थी उतनी ही भारतीय राजाओ के लिए एक अभिशाप बन गया . इस प्रकार अंग्रेजो की सभी समस्याएं इस संधि के द्वारा खत्म हो गयी सहायक संधि के निम्नलिखित अवगुण है

  • संधि अपनाने के बाद अंग्रेजो पर आश्रित हो गये .उन्होंने अपनी  स्वतन्त्रता खो दी . वे शक्तिहीन , असहाय और याचक बन गये .
  • सहायक संधि को स्वीकार करने के बाद राज्य के सभी आंतरिक कार्यो में कंपनी का नियन्त्रण हो गया . भारत के शासक पूरी तरह से कंपनी पर आश्रित हो गये
  • इस संधि ने राज्यों की आर्थिक दशा खराब कर दी . जैसे जैसे अंग्रेजो का प्रभाव बढता गया उसी प्रकार धन की मांग बढती गई . राज्यों का काफी क्षेत्र देने के बाद भी कंपनी का खर्च पूरा नहीं हो रहा था .
  • सभी राज्यों ने इस संधि को स्वीकार करने के बाद अंग्रेजो को भारतीय राजाओ को हटाने में  ज्यादा मुस्किल नही हुई . भारत के राज्यों का प्रशासन  खराब हो गया. यदि जनता कोई भी आवाज उठाती तो उसको बल पूर्वक दबा दिया जाता था .
  • इस संधि से भारतीय राज्यों का अपना गोरव और राष्ट्र गोरव  ख़त्म हो गया . इस प्रकार भारतीय  सैनिक आर्थिक और मानसिक रूप से कमजोर हो गये .
  • संधि के लागु होने पर अंग्रेजो ने भारतीयों की कमजोरी जान ली और भारत से बाहर विश्व के आगे भारत का राष्टीय चरित्र कमजोर पड़ गया

इस प्रकार इस संधि के सभी अवगुण भारत और भारतीयों के लिए घातक थी इसने भारतीयों को हर प्रकार से कमजोर , असहाय, निकम्मा , बना दिया.

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5 Comments

  1. सहायक संधि 1801 मे ही क्यों स्वीकारी जाती है क्यों 1765 मे नही?

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